Friday, 21 November 2025

“धार्याति सा धर्म:” ... धारण करने योग्य आचरण ही धर्म है ---

 “धार्याति सा धर्म:” ... धारण करने योग्य आचरण ही धर्म है| धर्म कभी भय और प्रलोभन पर आधारित नहीं होता| जहाँ सिर्फ भय और प्रलोभन है, वह धर्म नहीं, अधर्म है| भय या प्रलोभन के वशीभूत होकर किए गए कर्म कभी धार्मिक नहीं हो सकते, वे अधार्मिक ही होंगे| भारत में धर्म की व्याख्या अनेक ग्रन्थों में की गई है, लेकिन कणाद ऋषि द्वारा वैशेषिक सूत्रों में की गई परिभाषा ही सर्वमान्य और सर्वाधिक लोकप्रिय है ... "यतोऽभ्युदयनिःश्रेयससिद्धि: स धर्म:||"

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जिस से हमारे अभ्यूदय और निःश्रेयस की सिद्धि हो, वही धर्म है| अभ्युदय का अर्थ है ... जिस से हमारा उत्तरोत्तर विकास हो| निःश्रेयस का अर्थ है ... कष्टों या दुखों का अभाव, कल्याण, मंगल, मुक्ति और मोक्ष| इस का अर्थ यही हुआ कि ... "जिस से हमारा उत्तरोत्तर विकास, कल्याण और मंगल हो, व सब तरह के दुःखों, कष्टों से मुक्ति मिले वही धर्म है|
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अभ्युदय और निःश्रेयस ये वे दो लक्ष्य हैं जिन्हें प्राप्त करने के लिए मनुष्य अपने जीवन में प्रयत्न करते हैं| अभ्यूदय का सबसे बड़ा लक्ष्य है निज जीवन में ईश्वर की प्राप्ति, यानि निज जीवन में ईश्वर को व्यक्त करना| निःश्रेयस का सबसे बड़ा लक्ष्य है अनात्मबोध से मोक्ष यानि मुक्ति|
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मनुस्मृति में धर्म के लक्षण बताए गए हैं| बृहदारण्यक आदि उपनिषदों में और महाभारत, व रामायण जैसे ग्रन्थों में धर्म की गहनतन और अति विस्तृत जानकारी है, जिसका स्वाध्याय जिज्ञासु को स्वयं करना होता है|
शब्द "ख" आकाश तत्व यानि परमात्मा को व्यक्त करने के लिए होता है| परमात्मा से समीपता ही सुख है, और परमात्मा से दूरी होना ही दुःख है| विषय-वासनाओं में कोई सुख नहीं है, यह सुख का आभासमात्र है जो अंततः दुःखों की ही सृष्टि करता है|
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जैसा मेरी अति अल्प और सीमित बुद्धि से समझ में आया वह मेंने लिख दिया| इस से अधिक जानकारी के लिए जिज्ञासुओं को स्वयं स्वाध्याय और सत्संग करना होगा| अंत में यही कहूँगा कि सत्य-सनातन-धर्म ही धर्म है, अन्य सब पंथ, मज़हब और रिलीजन हैं|
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कृपा शंकर
२१ नवंबर २०२०