अभ्यास और वैराग्य का महत्व .....
भगवान कहते हैं .....
असंशयं महाबाहो मनो दुर्निग्रहं चलं| अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते||१६:३५||
प्रकृति में कुछ भी निःशुल्क नहीं है| हर चीज का शुल्क चुकाना पड़ता है| जब तक मन चंचल है तब तक ईश्वर की परिकल्पना असम्भव है| मन की चंचलता को स्थिर करना साधना का प्रथम लक्ष्य है| इसके लिए अभ्यास और वैराग्य दोनों ही आवश्यक हैं| अभ्यास और वैराग्य वह शुल्क है जो हमें मन की चंचलता को स्थिर करने के लिए चुकाना पड़ता है|
अपनी गुरु-परम्परानुसार खूब अभ्यास करें| परमात्मा से परम प्रेम होने पर वैराग्य भी होने लगता है पर वैराग्यवान यानि विरक्त लोगों के साथ नियमित सत्संग करने से वैराग्य निश्चित रूप से सिद्ध होता है|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१७ मार्च २०१८
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