हर परिस्थिति में भारत के सनातन गौरव, आत्म-सम्मान, प्रकृति और धर्म की रक्षा हो। दैवीय शक्तियाँ हमारी सहायता करें। परमात्मा से परमप्रेम मेरा स्वभाव है। मुझे परमात्मा से कुछ भी नहीं चाहिए। योग या भोग की किसी आकांक्षा का जन्म ही न हो। केवल उन्हें पूर्णतः समर्पित होने की अभीप्सा हो। जो कुछ भी उनका दिया हुआ है, वह सब कुछ, और स्वयं इस अकिंचन का भी समर्पण वे पूर्णतः स्वीकार करें। एकमात्र अस्तित्व उन्हीं का है, कोई मैं या मेरा नहीं है। मुझे ईश्वर ने जो भी कार्य दिया है, पूरी सत्यनिष्ठा से उसे सम्पन्न करना ही मेरा दायित्व और परमधर्म है। अन्य जैसी हरिःइच्छा। अपने प्रेमास्पद का ध्यान निरंतर तेलधारा के समान होना चाहिए। आगे के सारे द्वार स्वतः ही खुल जाते हैं।
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परमात्मा का आकर्षण अत्यधिक प्रबल है। मैं स्वयं को रोक नहीं सकता। अब से बचा-खुचा सारा समय और यह जीवन परमात्मा की उपासना को समर्पित है -- दिन में २४ घंटे, सप्ताह में सातों दिन। सारी सृष्टि को अपने साथ लेकर परमात्मा की चेतना स्वयं ही अपना ध्यान करती है। कहीं कोई भेद नहीं है। मैं तो एक निमित्त मात्र हूँ, जो केवल समर्पण कर सकता हूँ, इससे अधिक कुछ भी नहीं। आप सब की यही सबसे बड़ी सेवा है, जो मैं कर सकता हूँ।
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नित्य प्रातः उठते ही संकल्प करें ---
"आज का दिन मेरे इस जीवन का सर्वश्रेष्ठ दिन होगा| आज के दिन मेरे इस जीवन में परमात्मा के परमप्रेम की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्ति होगी| मैं परमात्मा का अमृतपुत्र हूँ, मैं परमात्मा के साथ एक हूँ, मैं आध्यात्म के उच्चतम शिखर
पर आरूढ़ हूँ| मैं परमशिव हूँ, शिवोहं शिवोहं अहं ब्रह्मास्मि|" ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१२ अप्रेल २०२५
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