Thursday, 10 April 2025

मुक्ति और बंधन में अब कोई भेद नहीं रहा है ---

 

मुक्ति और बंधन में अब कोई भेद नहीं रहा है ---
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अरुणिमा की अति दूर से आती झलक जैसे बताती है कि सूर्योदय में विलम्ब नहीं है। वैसे ही परमात्मा से परमप्रेम और अनुराग की हर अनुभूति बताती है कि इस जीवन में परमात्मा के अवतरण में विलम्ब नहीं है।
हे प्रभु, ये सब अनुकूलताएँ और प्रतिकूलताएँ तुम्ही हो। सारी मायावी बाधाएँ, और अभीप्सा भी तुम हो। हर पाश, हर बंधन, और उनसे मुक्ति भी तुम ही हो।
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प्रश्न : क्या मैं अवधूतावस्था की ओर अग्रसर हूँ?
उत्तर : यह दीवानापन या पागलपन तो यही बता रहा है। एकमात्र अवधूत तो भगवान दत्तात्रेय हैं, अन्य सब उन्हीं के कृपापात्र हैं।
अ --- आनंदे वर्तते नित्यम् (सदैव आनंदमय ही रहनेवाला)।
व --- वर्तमानेन वर्तते (प्रत्येक क्षण वर्तमान काल में रहनेवाला)।
धू --- ज्ञाननिर्धूत कल्याणः (जो ज्ञान से निर्धूत व कल्याणकारी है)।
त --- तत्त्वचिन्तनधूत येन (जो तत्त्वचिंतन रत हो)।
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हरिः ॐ तत्सत्॥ ॐ ॐ ॐ॥
कृपा शंकर
१० अप्रेल २०२५

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