सर्वव्यापी भगवान स्वयं ही यह "मैं" बन कर, अपनी उपासना कर रहे हैं। भगवान स्वयं को इस सम्पूर्ण ब्रह्मांड व सारे जड़ और चेतन के रूप में व्यक्त कर रहे हैं। मैं यह शरीर नहीं, सर्वव्यापक अनंत सर्वस्व परमात्मा के साथ एक हूँ। मैं साँस लेता हूँ तो सारा ब्रह्मांड साँसें लेता है। सम्पूर्ण सृष्टि मेरे साथ-साथ भगवान का ध्यान कर रही है। कुछ भी मुझ से पृथक नहीं है। सम्पूर्ण सृष्टि का अस्तित्व ही मेरा अस्तित्व है।
ॐ सहनाववतु सहनोभुनक्तु सहवीर्यंकरवावहै।
"ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदँ पूर्णात् पूर्णमुदच्यते |
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते | ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ||"
.
ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
११ अप्रेल २०२३
No comments:
Post a Comment