मैं युद्ध की बातें कर रहा हूँ, लेकिन मेरी चेतना निरंतर भगवान श्री कृष्ण में है। गीता में भगवान कहते हैं --
"तस्मात्सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर युध्य च।
मय्यर्पितमनोबुद्धिर्मामेवैष्यस्यसंशयम्॥ ८:७॥"
अर्थात् - इसलिए, तुम सब काल में मेरा निरन्तर स्मरण करो; और युद्ध करो मुझमें अर्पण किये मन, बुद्धि से युक्त हुए निःसन्देह तुम मुझे ही प्राप्त होओगे॥
.
"तूँ हर समय मेरा स्मरण कर, और शास्त्राज्ञानुसार स्वधर्मरूप युद्ध भी कर। इस प्रकार मुझ वासुदेव में जिस के मन-बुद्धि अर्पित हैं, ऐसा तूँ मुझ में अर्पित किये हुए मन-बुद्धि वाला होकर मुझ को ही अर्थात् मेरे यथाचिन्तित स्वरूप को ही प्राप्त हो जायगा, इसमें संशय नहीं है।
.
हमारा सब से बड़ा शत्रु हमारे अज्ञान का अंधकार है, जिसने हमें परमात्मा से पृथक कर रखा है। हमारे जीवन का हर क्षण उस अज्ञान तिमिर के विरुद्ध युद्ध है, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण हमारे सारथी हैं। हमारा कार्य निरंतर परमात्मा के प्रकाश की निज जीवन में वृद्धि करते रहना है।
ॐ तत्सत् !! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !!
कृपा शंकर
८ जून २०२३
No comments:
Post a Comment