कामना की पूर्ति स्वयं के श्रद्धा-विश्वास से ही होती है ---
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मेरा अनुभव यह है कि चाहे कोई भी किसी भी तरह की कामना हो, उसकी पूर्ति स्वयं की श्रद्धा और विश्वास से ही होती है, न कि पीर-फकीरों, दरगाहों, मजारों, समाधियों, और देवस्थानों पर जाकर दुआएँ और मनौतियाँ करने से। एक पूरी हुई कामना तुरंत अन्य अनेक कामनाओं को जन्म दे देती है, और हमारे दुःख का कारण बनती है। बाहरी अनुष्ठान तो एक बहाना मात्र हैं, वास्तविक शक्ति श्रद्धा और विश्वास में ही होती है। रामचरितमानस में स्पष्ट लिखा है --
याभ्यां बिना न पश्यन्ति सिद्धाः स्वान्तःस्थमीश्वरम्॥"
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श्रद्धावाला व्यक्ति ही ज्ञान को प्राप्त करता है, और वही अपने सदगुरु की कृपा को प्राप्त करने का पूर्ण अधिकारी होता है। गीता में भगवान कहते हैं --
"श्रद्धावाँल्लभते ज्ञानं तत्परः संयतेन्द्रियः।
ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति॥4:३९॥"
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ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
९ जून २०२४
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