परमात्मा से हमारा क्या सम्बन्ध है ? ---
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यह प्रश्न ही गलत है| यह तो वैसे ही है जैसे कोई यह पूछे कि महासागर में पानी के बुलबुले का महासागर से क्या सम्बन्ध है| हम भगवान से कोई सुविधाजनक या भावानुकूल सम्बन्ध जोड़ना चाहें तो यह हमारा दुराग्रह ही होगा| ऐसा दुराग्रह नहीं होना चाहिए|
इस देह में जन्म लिया उससे पूर्व भी भगवान ही हमारे साथ थे| इस देह में जन्म लेने के पश्चात् भगवान ने ही माँ-बाप के रूप में अपना प्रेम दिया| वे ही भाई-बहिन और अन्य सम्बन्धी व मित्रों के रूप में आये| शत्रु-मित्र सब वे ही थे| इस देह को भी वे ही जीवंत रखे हुए हैं| इसके ह्रदय में वे ही धड़क रहे हैं, इन आँखों से वे ही देख रहे हैं, कानों से वे ही सुन रहे हैं, और पैरों से भी वे ही चल रहे हैं| जो दिखाई दे रहा है वह तो उनकी माया है| सब कुछ तो वे ही हैं| स्वयं की पृथकता का बोध भी एक भ्रम ही है|
अतः सारे सम्बन्ध तो उन्हीं के हैं| हमारा तो एकमात्र सम्बन्ध उन्हीं से है| उनके अतिरिक्त अन्य सारे सम्बन्ध भ्रम मात्र हैं| परमात्मा को पाने की लालसा भी एक भ्रम मात्र ही है| हम उनसे बिछुड़े ही कब थे?
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
९ जून २०१६
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