सब का साथ, सब का विकास ---
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अंधकार और प्रकाश कभी साथ-साथ नहीं रह सकते। अमृत में थोड़ा सा विष मिलाते ही पूरा अमृत, विष हो जाता है। अमृत का भी साथ, और विष का भी साथ -- किसी का विकास नहीं कर सकता। उसका परिणाम -- मृत्यु है।
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चमचमाती भव्य साफ-सुथरी सड़कें, ऊँचे ऊँचे चमचमाते भवन, स्वच्छ सुन्दर कपड़े पहिने मनुष्य ही -- विकास के परिचायक नहीं हो सकते।
किसी भी देश की वास्तविक संपदा और विकास के परिचायक उस के उच्च-चरित्रवान, स्वाभिमानी, कार्यकुशल, राष्ट्रप्रेमी, परोपकारी, और धर्मपरायण सत्यनिष्ठ नागरिक होते हैं।
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युवावस्था में मैंने अनेक देशों की यात्राएँ की हैं। एक बार तो पूरी पृथ्वी की परिक्रमा भी की थी। चीन की दीवार, मिश्र के पिरामिड, कनाडा का नियाग्रा फॉल, पनामा व स्वेज़ नहर, और विश्व के अनेक देशों के अनेक नगरों की भव्यता और दरिद्रता भी देखी है।
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कुछ देशों की भव्य सड़कें, चमचमाती इमारतें और बाहरी वैभव देखकर बड़ा प्रभावित हुआ था। लेकिन इस के पीछे वहाँ के लोगों का कष्टमय जीवन, गरीबी, और निरंतर संघर्ष भी था, जो किसी को दिखाई नहीं देता।
जिस देश सं.रा.अमेरिका को हम विश्व का सर्वाधिक समृद्ध देश समझते हैं, वहाँ की समृद्धि ८ से १० प्रतिशत लोगों तक ही सीमित है। बाकी सब झूठा दिखावा है।
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अब समय आ गया है, भारत में समान नागरिक संहिता, जनसंख्या नियंत्रण, समयानुसार नए कठोर कानून, और न्यायिक व पुलिस व्यवस्था में सुधार हो। सभी के साथ समानता का व्यवहार हो। ये विकास-पुरुष से हमारी अपेक्षाएँ हैं।
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मनुष्य जीवन की उच्चतम उपलब्धि --- भगवत्-प्राप्ति, यानि आत्म-साक्षात्कार है।
ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
१४ मई २०२४
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