Friday, 28 March 2025

आज नहीं तो कल, कभी तो उनकी कृपा होगी ही, हम सदा अंधकार में नहीं रह सकते ---

आज नहीं तो कल, कभी तो उनकी कृपा होगी ही| हम सदा अंधकार में नहीं रह सकते| हमारी उच्च प्रकृति में परमात्मा के सिवाय अन्य कुछ भी नहीं है| लेकिन निम्न प्रकृति दलदल में है| कोई भी माता हो अपनी संतान को संकट में नहीं देख सकती| जगन्माता जिसने इस सारे ब्रह्मांड को धारण कर रखा है, वह कभी निष्ठुर नहीं हो सकती| इस दलदल से मुझे विरक्त और मुक्त तो उन्हें करना ही होगा|

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भगवान ने अनेक अनुभव दिए हैं, लेकिन हमें तो अनुभव नहीं, स्वयं भगवान की प्रत्यक्ष उपस्थिति चाहिए| वर्षों पहिले की बात है| एक बार इस शरीर से संबंध टूट गया और मैं एक ऐसे स्थान पर पहुँच गया जहाँ अंधकार ही अंधकार था| एक खड़ी सीधी विशाल अंधकारमय सुरंग थी जिसमें इतना गहरा काला अंधकार था कि कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था| मुझे ऊपर-नीचे विचरण करने में कोई कठिनाई नहीं हो रही थी, लेकिन समझ में नहीं आ रहा था कि इतना अंधकार क्यों हैं| इतना अवश्य अनुभूत हो रहा था कि वहाँ अनेक जीवात्माएं हैं जो अत्यधिक कष्ट में हैं| अचानक किसी ने चिल्लाकर कर्कश आवाज में मुझ से कहा कि तुम यहाँ कैसे आ गए ? निकलो बाहर ! और मुझे धक्का देकर बाहर फेंक दिया गया| उसी क्षण बापस इस शरीर में आ गया| यह कुछ डरावना अनुभव था| भगवान से प्रार्थना की कि ऐसे अनुभव दुबारा न हों| फिर कभी ऐसे अनुभव नहीं हुए| भगवान की कृपा से एक विधि अवश्य समझ में आई कि अंत समय में ब्रह्मरंध्र से कैसे निकला जाये| इस शरीर के बाहर की अनुभूतियाँ अनेक बार हुई हैं जिनसे मृत्यु का भय नहीं रहा| लेकिन इन सब से संतोष और तृप्ति नहीं हुई है| संतोष और तृप्ति तो भगवान की प्रत्यक्ष उपस्थिती से ही हो सकती है|
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हमारा उद्देश्य किसी तरह के अनुभव लेना नहीं, बल्कि परमात्मा का साक्षात्कार है| भगवान एक न दिन तो अवश्य कृपा करेंगे और इस सांसारिक महामोह से विरक्त और मुक्त करेंगे| और कुछ लिखा ही नहीं जा रहा है| इस लेख को आधा-अधूरा ऐसे ही छोड़ रहा हूँ|
ॐ तत्सत् !!
२९ मार्च २०२१

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