"ॐ नमःशिवाय विष्णुरूपाय शिवरूपाय विष्णवे।
शिवस्य हृदयं विष्णु: विष्णोश्च हृदयं शिव:॥"
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मनुष्य की बुद्धि परमात्मा की ऊंची से ऊंची परिकल्पना जो कर सकती है, वह शिव और विष्णु की है। तत्व रूप में दोनों एक हैं। शिव ही विष्णु हैं, और विष्णु ही शिव हैं। श्रीमद्भगवद्गीता के पुरुषोत्तम वासुदेव भी वे हैं, रामायण के राम भी वे हैं, और वेदान्त के ब्रह्म भी वे ही हैं। अपनी उच्चतम ऊर्ध्वस्थ चेतना में उनके विराटतम सर्वव्यापी ज्योतिर्मय रूप का ध्यान ही हमें करना चाहिये, जहां कोई भेद नहीं है।
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"भक्ति" -- भगवान से एक स्वाभाविक अनुराग और परमप्रेम को भक्ति कहते हैं, जिसके साथ साथ भगवान को उपलब्ध होने की एक स्वाभाविक अभीप्सा भी हो। बिना अभीप्सा के कोई आध्यात्मिक प्रगति नहीं हो सकती। भक्ति की पूर्णता शरणागति और समर्पण में है।
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"साधना" के लिए आसन, मुद्रा और यौगिक क्रियाओं का ज्ञान आवश्यक है। साथ साथ दृढ़ मनोबल और बलशाली स्वस्थ शरीर रुपी साधन भी हो। मन में उठने वाले बुरे विचार और दुष्वृत्तियों से मुक्त होने का अभ्यास भी करते रहना पड़ता है।
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ध्यान हमेशा परमात्मा के अनंत ज्योतिर्मय ब्रह्मरूप और नाद का होता है। हम बह्म-तत्व में विचरण और स्वयं का समर्पण करें, -- यही आध्यात्मिक साधना है। परमात्मा के प्रति परमप्रेम और शरणागति/समर्पण का भाव हो तो साधना का मार्ग सरल हो जाता है।
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भगवान हम से पृथक नहीं हैं। हमें स्वयं को ही ईश्वर बनना पड़ता है। भगवान हमारे ही माध्यम से स्वयं को व्यक्त करते हैं। वे आकाश से उतर कर, या किसी अन्य विश्व से आने वाले कोई नहीं हैं। परमात्मा की अनुभूति में हम सब तरह की सीमितताओं से मुक्त होकर, असीम आनंद और असीम प्रेम (भक्ति) से भर जाते हैं। यह असीम प्रेम (भक्ति) और असीम आनंद ही आत्म-साक्षात्कार है, यही भगवत्-प्राप्ति है। यही हमारे जीवन का उद्देश्य है।
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"सम्पूर्ण भारत से असत्य के अंधकार का नाश हो। भारत के सभी नागरिक अति उच्च शिक्षित, कर्तव्यनिष्ठ व सत्यधर्मावलम्बी हों। सम्पूर्ण भारत में कहीं पर भी अधर्म का अवशेष न रहे।" इस वर्ष-प्रतिपदा पर भगवान श्रीराम से हमारी यही प्रार्थना है। रामराज्य की स्थापना भारत में निश्चित रूप से होगी। भगवान श्रीराम ही भारत की रक्षा करेंगे। ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
३० मार्च २०२५
सभी को मंगलमय शुभ कामनाएँ।
ॐ स्वस्ति !! ॐ तत्सत्
कृपा शंकर
१ अप्रेल २०२५
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