ॐ कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने। प्रणतः क्लेशनाशाय गोविंदाय नमो नमः'॥
ॐ वसुदेवसुतं देवं कंसचाणूरमर्दनम्। देवकीपरमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्॥
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मैं स्वस्थ रहूँ या अस्वस्थ, कोई अंतर नहीं पड़ता। शांत रूप से भगवान की भक्ति का प्रचार-प्रसार किये बिना नहीं रह सकता। यही मेरा जीवन है। अपनी चेतना को सम्पूर्ण सृष्टि में फैलाकर, यानि सम्पूर्ण सृष्टि को अपनी चेतना में लेकर मेरे माध्यम से भगवान स्वयं ही, अपनी साधना करते हैं। मैं तो निमित्त साक्षीमात्र ही रहता हूँ। जब तक जीवित हूँ, तब तक हर साँस से शांत रूप से भगवान की भक्ति का ही प्रचार-प्रसार होगा।
"ॐ सच्चिदानंद रूपाय विश्वोत्पत्यादिहेतवे। तापत्रय विनाशाय श्री कृष्णाय वयं नम:॥"
ॐ तत्सत् ॥ ॐ ॐ ॐ ॥
कृपा शंकर
२६ मार्च २०२५
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