Tuesday, 1 April 2025

इस समय पूरे विश्व में ज्ञात-अज्ञात रूप से अच्छा-बुरा बहुत कुछ हो रहा है, और बहुत कुछ होने वाला है ---

इसकी झलक भी मुझे दिखाई दे रही है। अनेक नकारात्मक और सकारात्मक शक्तियाँ अपना प्रभाव दिखायेंगी। पूरी समष्टि के साथ हम एक हैं, कोई भी या कुछ भी हम से पृथक नहीं है। अगले तीन वर्षों में आप बहुत कुछ देखोगे, और बहुत कुछ सीखोगे। प्रकृति के निर्देशों का पालन करें जिनकी अब और उपेक्षा नहीं कर सकते।
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आज २१ मार्च को अपना सूर्य इस पृथ्वी की भूमध्य रेखा पर रहेगा, जिस कारण पूरी पृथ्वी पर महाबसंत विषुव (Equinox) होगा, यानि दिन और रात की अवधि लगभग बराबर रहेगी। पृथ्वी अपनी धुरी पर २३½° झुके हुए, सूर्य के चक्कर लगाती है, इस प्रकार वर्ष में एक बार पृथ्वी इस स्थिति में होती है जब वह सूर्य की ओर झुकी रहती है, व एक बार सूर्य से दूसरी ओर झुकी रहती है। वर्ष में दो बार ऐसी स्थिति आती है, जब पृथ्वी का झुकाव न सूर्य की ओर होता है, और न ही सूर्य से दूसरी ओर, बल्कि बीच में होता है। इस स्थिति को विषुव या Equinox कहा जाता है। इन दोनों तिथियों में दिन और रात की लंबाई लगभग बराबर होती है।
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पुराण पुरुष को नमन ---
"त्वमादिदेवः पुरुषः पुराण स्त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम्।
वेत्तासि वेद्यं च परं च धाम त्वया ततं विश्वमनन्तरूप॥
वायुर्यमोऽग्निर्वरुणः शशाङ्कः प्रजापतिस्त्वं प्रपितामहश्च।
नमो नमस्तेऽस्तु सहस्रकृत्वः पुनश्च भूयोऽपि नमो नमस्ते॥
नमः पुरस्तादथ पृष्ठतस्ते नमोऽस्तु ते सर्वत एव सर्व।
अनन्तवीर्यामितविक्रमस्त्वं सर्वं समाप्नोषि ततोऽसि सर्वः॥" (श्रीमद्भगवद्गीता)
अर्थात् - आप ही आदिदेव और पुराणपुरुष हैं तथा आप ही इस संसार के परम आश्रय हैं। आप ही सब को जानने वाले, जानने योग्य और परमधाम हैं। हे अनन्तरूप ! आपसे ही सम्पूर्ण संसार व्याप्त है।
आप वायु (अनाहतचक्र), यम (मूलाधारचक्र), अग्नि (मणिपुरचक्र), वरुण (स्वाधिष्ठानचक्र) , चन्द्रमा (विशुद्धिचक्र), प्रजापति (ब्रह्मा) (आज्ञाचक्र), और प्रपितामह (ब्रह्मा के भी कारण) (सहस्त्रारचक्र) हैं; आपके लिए सहस्र बार नमस्कार, नमस्कार है, पुन: आपको बारम्बार नमस्कार, नमस्कार है॥
हे अनन्तसार्मथ्य वाले भगवन्! आपके लिए अग्रत: और पृष्ठत: नमस्कार है, हे सर्वात्मन्! आपको सब ओर से नमस्कार है। आप अमित विक्रमशाली हैं और आप सबको व्याप्त किये हुए हैं, इससे आप सर्वरूप हैं॥
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सब का कल्याण हो, सब का जीवन कृतकृत्य और कृतार्थ हो।
कहीं कोई पृथकता का बोध न रहे। ॐ तत्सत्॥ ॐ ॐ ॐ॥
कृपा शंकर
२१ मार्च २०२५

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