Monday, 24 March 2025

पराशर ऋषि .......

वेदों के अनेक मन्त्रों के दृष्टा और 'पराशर संहिता' के लेखक पराशर मुनि महर्षि वशिष्ठ के पौत्र थे| उनके पिता का नाम था -- शक्ति, और माता का नाम था -- अदृश्यन्ती| कल्माषपाद नाम का एक राजा शक्ति के श्राप से राक्षस हो गया था| राक्षस बनते ही वह शक्ति को चबाकर खा गया| उस समय पराशर अपनी माता के गर्भ में थे| अत्यंत शोकाकुल होकर वशिष्ठ ने बार बार आत्महत्या का प्रयास किया पर हर बार विफल रहे| वशिष्ठ जब आश्रम लौट रहे थे तब पीछे से वेदमंत्र सुनाई दिए| पीछे मुड़कर उन्होंने अपनी पुत्रवधू अदृश्यन्ती को आते देखा जिसने बताया कि उसका गर्भस्थ बालक ही वेदपाठ कर रहा है|

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यह शिशु आगे चलकर पराशर कहलाये| जब वह मातृगर्भ में थे तब वशिष्ठ ने अपने प्राण परासु (पर = त्यागना, असू = प्राण) करना चाहा था इसलिए इस शक्ति के पुत्र बालक का नाम पराशर पड़ा|
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ऋषि पराशर जी ने सब शास्त्रों में पारंगत एक पुत्र की कामना से नर्मदा के तट पर घोर तपस्या की| उन्होंने नर्मदा तट पर एक लाल रंग का शिवलिंग स्थापित किया जिस पर प्राकृतिक रूप से एक त्रिपुंड उभरा हुआ था, और नारायणी गौरी की साधना की जिनके आशीर्वाद से उन्हें सत्यनिष्ठ और सर्वशास्त्रविशारद कृष्णद्वैपायन व्यास नामक पुत्र प्राप्त हुआ| प्राचीन भारत में लोग अपनी हर अभीष्ट की प्राप्ति के लिए तपस्या को ही मूल साधन मानते थे, चाहे वह सांसारिक कामना हो या आध्यात्मिक| पाराशर जैसे महान ऋषि को भी एक महान पुत्र के लिए तपस्या करनी पडी थी| आजकल सारे पुत्र संयोग से ही होते हैं इसीलिए लगता है महान आत्माएं भारत में अवतरित नहीं हो रही हैं|
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ॐ तत्सत् !ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२४ मार्च २०१६

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