इज़राइल की भूमि (फिलिस्तीन) प्रथम विश्व युद्ध तक सल्तनत-ए-उस्मानिया (तुर्की) के आधीन थी। इज़राइल को स्वतन्त्रता २६ वर्षीय कुँवर मेजर दलपत सिंह शेखावत के नेतृत्व में जोधपुर लांसर्स (जोधपुर की सेना) ने तुर्की की सेना को २३ सितंबर १९१८ को हराकर दिलाई थी। इज़राइल इसका अहसान मानता है। उस समय भारत पर अंग्रेजों का राज था, अतः इसका सारा श्रेय अंग्रेजों ने ले लिया।
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लेकिन उस विजय का श्रेय २६ वर्षीय कुँवर मेजर दलपत सिंह शेखावत को जाता है, जिनकी कमांड में जोधपुर की सेना ने तुर्की की सेना को हराया। उस युद्ध में जोधपुर की सेना के करीब नौ सौ राठौड़ सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए थे। मेजर दलपत सिंह भी इस युद्ध में वीर गति को प्राप्त हुए। इस युद्ध ने एक अमर इतिहास लिख डाला, जो आज तक पुरे विश्व में कहीं भी देखने को नहीं मिला था। जोधपुर के वीर राठौड़ सैनिकों ने विजयश्री प्राप्त की और हाइफा पर अधिकार कर के चार सौ साल से भी अधिक पुराने सल्तनत-ए-उस्मानिया (Ottoman Empire) के शासन का अंत कर दिया।
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समाचार सुनने में आ रहे हैं कि वर्तमान में चल रहे युद्ध के पश्चात इज़राइल एक लाख कार्य-कुशल भारतीय हिंदुओं को नौकरी देगा। उनका वेतन अमेरिकी डॉलर में होगा। इज़राइल को निर्माण कार्य, कारखानों और अन्य उद्योगों में काम करने के लिए ऐसे कार्यकुशल श्रमिकों की आवश्यकता होगी जिनकी हमास के प्रति कोई सहानुभूति नहीं हो।
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