भक्तिपूर्वक गुरु-चरणों में मानसिक रूप से प्रणाम, आचमन और प्राणायाम ---- .
ये किसी भी पूजा-पाठ, उपासना/साधना से पूर्व करना अनिवार्य है। इनके बिना सफलता नहीं मिलती।
अपनी गुरु-परंपरा और सदगुरु को प्रणाम अवश्य करें। गुरु महाराज को ही कर्ता बनायें, इससे साधन में कोई भूल-चूक हो जाये तो गुरु महाराज उसका शोधन कर देते हैं।
आचमन से भक्ति जागृत होती है।
आसन शुद्ध हो। आहार-शुद्धि के बिना विचार-शुद्धि नहीं होती। विचार-शुद्धि के बिना एकाग्रता नहीं होती। अपने विचारों का सदा अवलोकन करते रहें। जैसा हम सोचते हैं, वैसे ही बन जाते हैं।
ॐतत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१४ अप्रेल २०२४
.
पुनश्च: --पिछले चार दिनों से मैं एक एकांत आश्रम में एक ब्रह्मज्ञ वेदांती दण्डी सन्यासी महाराज के साथ सत्संग कर रहा था। आज स्वास्थ्य संबंधी कारणों से बापस घर लौटना पड़ा। अनेक रहस्य अनावृत हुए हैं, और स्वयं के अज्ञान का बोध हुआ है।
संसार में छल-कपट और असत्य भरा पड़ा है, किसी से मिलने की इच्छा भी नहीं है। हर कदम पर विश्वासघात और धोखा ही धोखा है।
परमशिव भाव में स्थित होकर परमशिव की यथासंभव अधिकाधिक उपासना करेंगे। इस दीपक में अधिक तेल नहीं बचा है, अतः कुछ भी भरोसा नहीं है। असत्य का अंधकार निश्चित रूप से दूर होगा और धर्म व राष्ट्र की रक्षा होगी।
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१४ अप्रेल २०२४
No comments:
Post a Comment