किसी भी विषय की या किसी भी मत, पंथ या विचारधारा की आलोचना से पूर्व उस का गहन अध्ययन करना चाहिए| सुनी-सुनाई बातों से किसी की मैं आलोचना नहीं करता| मैं मार्क्सवाद की आलोचना करता हूँ क्योंकि मुझे इसका प्रत्यक्ष अनुभव है| जब मार्क्सवाद अपने चरम पर था ऐसे समय भगवान ने मुझे पूर्व सोवियत संघ में रूस और लातविया में रहने का अवसर प्रदान किया है| फिर मार्क्सवादी देशों .... यूक्रेन, रोमानिया, चीन और उत्तरी कोरिया की यात्राएं भी भगवान ने करवाई हैं| विश्व के ग्यारह मुस्लिम देशों .... मोरक्को, मिश्र, तुर्की, सऊदी अरब, मलयेशिया, इन्डोनेशिया, बांग्लादेश, यमन, ईरान, संयुक्त अरब अमीरात, और कुवैत की यात्राएं भी भगवान ने करवाई हैं| अतः उनके भी मत के किसी विषय की मैं समालोचना करता हूँ तो अपने अध्ययन से करता हूँ| विश्व के अनेक ईसाई देशों में गया हुआ हूँ, अनेक विदेशी ईसाई पादरी मेरे अच्छे मित्र थे| उनके मत की समालोचना मैं उनके समक्ष ही किया करता था जिसे वे बड़े ध्यान से सुनते भी थे और सहमत भी होते थे| अब भी कई बाते मुझे अच्छी नहीं लगती जिनकी आलोचना मैं सोच-समझ कर अपनी मर्यादा में रहते हुए ही करता हूँ| मेरी शुभ कामनाएँ सभी के प्रति हैं| सभी का कल्याण हो| ॐ नमः शिवाय !!
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