मोक्ष और मुक्ति के स्थान पर हमें "पूर्णता" का ही चिंतन, मनन और ध्यान करना चाहिये।
.
मोक्ष और मुक्ति -- पूर्णता का ही परिणाम है। केवल परमात्मा ही पूर्ण हैं। निज जीवन में परमात्मा की अभिव्यक्ति ही पूर्णता है। मेरे विचार से मोक्ष और मुक्ति का चिंतन हमारा अज्ञान है। केवल परमात्मा में ही मोक्ष, मुक्ति और स्वतन्त्रता है। एक क्षण के लिए भी परमात्मा को न भूलें, निरंतर उनका अनुस्मरण (Recollection) करते रहें।
गीता में भगवान कहते हैं ---
मय्यर्पितमनोबुद्धिर्मामेवैष्यस्यसंशयम्॥८:७॥"
(तस्मात् सर्वेषु कालेषु माम् अनुस्मर युध्य च। मयि अर्पित मन बुद्धि: माम् एव एष्यसि असंशय॥)
अर्थात् -- इसलिए, तुम सब काल में मेरा निरन्तर स्मरण करो; और युद्ध करो मुझमें अर्पण किये मन, बुद्धि से युक्त हुए निःसन्देह तुम मुझे ही प्राप्त होओगे॥
"ओमित्येकाक्षरं ब्रह्म व्याहर्न्मानुस्मरण।
यः प्रयति त्यजन्देहं स याति परमं गतिम्॥८:१३॥"
(ॐ इत्येकक्षरं ब्रह्म व्याहारं मम अनुस्मरण। यः प्रयाति त्यजं देहं स याति परमं गतिम्॥)
अर्थात् -- जो पुरुष ओऽम् इस एक अक्षर ब्रह्म का उच्चारण करता हुआ और मेरा स्मरण करता हुआ शरीर का त्याग करता है, वह परम गति को प्राप्त होता है॥
.
ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पूर्णमुदच्यते। पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते॥
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः॥
और कुछ भी अन्य इस समय लिखने योग्य नहीं है। भगवान का अनुस्मरण (Recollection) हर समय करते रहें। यही पूर्णता का द्वार है।
कृपा शंकर
१९ मई २०२३
.
(Note : पूर्णता पर इस लेख के बाद मुझे कुछ भी अन्य लिखने की आवश्यकता नहीं है। यह लेख अपने आप में पूर्ण है। पूर्णता केवल परमात्मा में हैं, केवल परमात्मा ही पूर्ण हैं। जैसे मिठाई खाने से मुँह मीठा होता है वैसे ही परमात्मा का स्मरण करने से जीवन आनंदित रहता है| जीवन उद्देश्यहीन न हो। एकमात्र उद्देश्य है जीवन में परमात्मा का अवतरण। अन्य सब बातें व्यर्थ और समय की बर्बादी है।)
No comments:
Post a Comment