आज १९ मई २०२५ को मेरे विवाह की ५२ वीं वर्षगांठ है। अपना सम्पूर्ण अस्तित्व परमात्मा को समर्पित करता हूँ। ॐ ॐ ॐ !!
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जैसे पृथ्वी चन्द्रमा को साथ लेकर सूर्य की परिक्रमा करती है वैसे ही एक गृहस्थ व्यक्ति अपनी चेतना में अपने परिवार के साथ एकाकार होकर परमात्मा की उपासना करता है। आध्यात्मिक दृष्टि से पूरी सृष्टि ही हमारा परिवार है, जिसके साथ एकाकार निमित्त मात्र होकर हम सब परमात्मा की उपासना करें। मैं आप सब के साथ एक हूँ। आपमें और मुझ में कोई अंतर नहीं है। ॐ ॐ ॐ !!
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"ॐ विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परा सुव यद् भद्रं तन्न आ सुव॥"
"ॐ आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतोऽदब्धासो अपरीतास उद्भिदः।
देवा नोयथा सदमिद् वृधे असन्नप्रायुवो रक्षितारो दिवेदिवे॥"
"ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः।
स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥"
"ॐ सहनाववतु सह नौ भुनक्तु सह वीर्यं करवावहै।
तेजस्वि नावधीतमस्तु मा विद्विषावहै॥"
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥ ॐ ॐ ॐ !!
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ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !! 













कृपा शंकर
१९ मई २०२५
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पुनश्च: --- मुझे अपने भौतिक जीवन की वैवाहिक वर्षगांठ पर की कई सौ मित्रों से शुभ संदेश प्राप्त हुए हैं। मैं परमात्मा का ऋणी हूँ कि उन्होंने मुझे इस योग्य बनाया। मेरे व्यक्तित्व में अनेक कमियाँ हैं जो परमात्मा ने मुझे दिखायी हैं। वे दूर तो मुझे स्वयं को ही करनी पड़ेंगी चाहे कितने भी जन्म और लेने पड़ें। मनुष्य जीवन एक सतत प्रक्रिया है जो चलती ही रहेगी। कर्म, भक्ति और ज्ञान -- इन तीनों में संतुलन भी रखना होगा। आप सभी में मैं अपने जीवन के केन्द्र बिन्दु भगवान वासुदेव को नमन करता हूँ --
ॐ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१९ मई २०२५
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