Saturday, 14 June 2025

हरिः से सम्मुखता ही जीवन है, और विमुखता मृत्यु है ---

 हरिः से सम्मुखता ही जीवन है, और विमुखता मृत्यु है ---

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परमात्मा के बारे में कोई भी सार्वजनिक चर्चा केवल संत-महात्माओं को ही करनी चाहिए, क्योंकि उनके समक्ष वे ही श्रौता आएंगे जिनमें सतोगुण या रजोगुण प्रधान है। जिनमें तमोगुण प्रधान है उनके समक्ष ईश्वर की चर्चा का कोई लाभ नहीं है, अतः नहीं करनी चाहिए। तमोगुणी लोग आध्यात्म के बारे में कुछ समझ भी नहीं पाएंगे। उन्हें सिर्फ मारकाट या लड़ाई-झगड़े की बात ही समझ में आ सकती है।
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एक बार मैं ब्रह्ममुहूर्त में सो कर उठा तब मुझे बुरा और डरावना अनुभव हुआ। मेरे चारों ओर अति घोर काले रंग का अंधकार ही अंधकार था। इतना भयंकर अंधकार कि कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था। मन में बहुत अधिक बुरे और डरावने विचार आ रहे थे। कुछ भी अच्छी बात दिमाग में नहीं आ रही थी। बड़ी कठिनाई से भगवान से प्रार्थना की कि मुझे इस अंधकार से बाहर निकालो।
उसी क्षण मैंने स्वयं को एक प्रकाशमय जगत में पाया, जहाँ किसी भी तरह का कोई अंधकार नहीं था। चारों ओर आनंद ही आनंद था। किसी ने मुझ से कहा कि भूल से भी पीछे मुड़कर मत देखना। पीछे प्रत्यक्ष मृत्यु है और सामने जीवन। पूरी बात मुझे समझ में आ गई जो किसी अन्य को समझाई नहीं जा सकती।
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हमारी चेतना में परमात्मा सदा हर समय निरंतर बने रहें तो यह परमात्मा से सम्मुखता है। विपरीत दिशा में अंधकार की ओर देखना परमात्मा से विमुखता है।
रामचरितमानस में भगवान कहते हैं --
"सनमुख होइ जीव मोहि जबहीं । जन्म कोटि अघ नासहिं तबहीं ॥
निर्मल मन जन सो मोहि पावा । मोहि कपट छल छिद्र न भावा ॥"
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भगवान का स्मरण पूरे दिन निरंतर होना चाहिए, रुक-रुक कर नहीं। गीता में भगवान कहते हैं --
"तस्मात्सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर युध्य च।
मय्यर्पितमनोबुद्धिर्मामेवैश्यसंशयम् ॥८:७॥"
"अनन्यचेताः सततं यो मां स्मरति नित्यशः।
तस्याहं सुलभः पार्थ नित्ययुक्तस्य योगिनः ॥८:१४॥"
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पूरे विश्व में इस समय भारत के विरुद्ध सारे पश्चिमी देशों, चीन, पाकिस्तान और ईसाई क्रूसेडरों व इस्लामी जिहादियों द्वारा षड़यंत्र रचे जा रहे हैं। निशाने पर सनातन धर्म है। ये सब सनातन धर्म को नष्ट करना चाहते हैं। ईश्वर की चेतना ही हमें बचा सकती है। आने वाला समय अच्छा नहीं, बहुत अधिक खराब है। हम एक भयावह विनाश और विध्वंस के साक्षी बनने वाले हैं। भगवान के भक्तों की रक्षा होगी।
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१५ जून २०२४

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