(प्रश्न) : साधक कौन है?
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(उत्तर) : साधक, साध्य और साधना --- ये तीनों स्वयं परमात्मा हैं। एकमात्र कर्ता वे ही हैं। हमारा कोई अस्तित्व नहीं है। स्वयं में कर्ताभाव एक राक्षसी भाव है, जिसका कभी उदय न हो।
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एक अवस्था आती है जब साधक-भाव नष्ट हो जाता है। सब कुछ तो परमात्मा स्वयं हैं। अपनी साधना वे स्वयं कर रहे हैं। बस वे एक पल के लिए भी अंतर्दृष्टि से ओझल नहीं होते। अब कौन तो साधक है और कौन साध्य? कुछ समझ में नहीं आता। कुछ चाहिए भी नहीं।
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आध्यात्म में परमात्मा के अतिरिक्त अन्य कुछ भी नहीं है। संसार में लौकिक रूप से धर्म-अधर्म, शत्रु-मित्र, देवता और असुर हैं। संसार में हमारा व्यवहार शास्त्रों और विवेक से निर्देशित हो। हर समय परमात्मा के हृदय में रहो। सब सही होगा।
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हे प्रभु आपकी जय हो। मुझ में किसी कामना का जन्म ही न हो।
ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१४ जून २०२५
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