Sunday, 10 November 2024

आत्मा में अथाह शक्ति है ---

आत्मा में अथाह शक्ति है। अपने शिवस्वरूप में प्रतिष्ठित होइये, फिर सृष्टि में ऐसी कोई शक्ति नहीं है जो हमें दबा सके। परमशिव हमारा आत्मस्वरूप है, जिस में हम प्रतिष्ठित हों। आत्मा को कोई दबा नहीं सकता।

शिवोहं शिवोहं शिवोहं शिवोहं शिवोहं !!
अहं ब्रह्मास्मि !! ॐ ॐ ॐ !!
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अपनी ठुड्डी को भूमि के समानान्तर, और मेरुदण्ड को उन्नत रखें। दृष्टिपथ भ्रूमध्य के मार्ग से अनंत की ओर व उससे भी परे हो। चेतना भी अनंत में हो। अपनी तीनों उपनाड़ियों सहित सुषुम्ना नाड़ी स्वतः ही जागृत हो जाएगी, और उसमें कुंडलिनी महाशक्ति का प्रवाह अपने आप ही होने लगेगा। जागृत होकर कुंडलिनी ही हमें परमात्मा का बोध कराती है।
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अपना हाथ परमात्मा के हाथों में थमा दो, व उसे पकड़ कर रखें, छोड़िये मत। हमारा निवास परमात्मा के हृदय में है। उनके हृदय में रहो। उनका केंद्र सर्वत्र है, परिधि कहीं भी नहीं। स्वयं के हृदय में कोई कुटिलता न हो, अन्यथा वे हाथ नहीं थामेंगे। स्वयं को उन्हीं के हाथों में सौंप दो।
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स्वर्ग और नर्क -- इन दोनों में कोई अंतर नहीं है, दोनों महा फालतू स्थान हैं। उपाय ऐसे करो कि जीवनमुक्त हो जाओ। दूसरों को ठगने की प्रवृत्ति बिलकुल न हो। जिनमें दूसरों को ठगने, लूटने या पराये धन की कामना होती है उन पर भगवान की कृपा कभी नहीं होती। वे कितना भी पुण्य करें, वह किसी काम नहीं आता। ऐसे लोग नर्क के कीड़े बनते हैं। उनके पास जो कुछ भी है वह पहले के किए हुये पुण्यों का फल है, जो अस्थायी है। फिर जाना तो उनको पशुयोनी में ही है।
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परमात्मा को अपने हृदय में रखो, और निरंतर उनके हृदय में रहो। परमात्मा को छोड़कर इधर-उधर कहीं भी मत झाँको। उन्हें भी आपके हृदय में रहकर प्रसन्नता होगी।
ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
५ नवंबर २०२४

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