(उत्तर १) वैसे तो यहूदियत, ईसाईयत और इस्लाम -- इन तीनों ही मज़हबों का आरंभ पैग़ंबर इब्राहिम अलैहिसलाम (Prophet Abraham) से होता है। ये तीनों ही इब्राहिमी मज़हब यानि Abrahamic Religions कहलाते हैं। इनके एक बेटे इस्माइल की नस्ल में इस्लाम का जन्म हुआ। दूसरे बेटे इसाक की नस्ल में यहूदियत और ईसाईयत का जन्म हुआ। इन तीनों मज़हबों का आदि पुरुष पैग़ंबर इब्राहिम अलैहिसलाम (Prophet Abraham) है। इनका आपसी हिंसक झगड़ा पारिवारिक है।
झगड़े का मूल कारण हदीसों की अपनी अपनी व्याख्या है। ईरान में चूंकि मुल्ले-मौलवियों का शासन है जो हदीसों को मानते हैं, लेकिन ईसाईयत और यहूदियत हदीसों को नहीं मानते। बस झगड़े का कारण यही है, अन्य कोई कारण नहीं है।
ईरान में जब वर्तमान मज़हबी शासन बदलेगा तभी इस झगड़े का अंत होगा। तब तक तो कोई उम्मीद नहीं है। मज़हबी शासन आने से पूर्व ईरान और इज़राइल दोनों ही एक दूसरे के परम मित्र थे। मैं अब बापस दुबारा लिखना चाहता हूँ कि ईरान-इज़राइल युद्ध का एकमात्र कारण मज़हबी उन्माद मात्र है, और कुछ नहीं।
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(उत्तर २) जैसे किसी पर किसी ग्रह की कुदृष्टि पड़ती है तब उसका सर्वनाश होने लगता है वैसे ही यूक्रेन पर अमेरिकी राष्ट्रपति जो वाइडेन और उनके बेटे हंटर वाइडेन की कुदृष्टि पड़ी और यूक्रेन का सर्वनाश हो गया। हंटर वाइडेन का ज्यादा नाम लेना भी उचित नहीं है, क्योंकि वह भी एक अशुभ ग्रह से कम नहीं है।
भारत पर भी इनकी कुदृष्टि थी, लेकिन भारत के ग्रह-नक्षत्र बहुत अधिक अच्छे थे और भारत का ये कुछ बिगाड़ नहीं पाये।
सोवियत संघ के समय से ही सोवियत संघ के सभी गणराज्यों में यूक्रेन सबसे अधिक उन्नत था। सबसे अधिक पढे-लिखे, मेहनती और समृद्ध लोग यूक्रेन के थे। सबसे अधिक अनाज का उत्पादन यूक्रेन में ही होता था। दूसरे शब्दों में यूक्रेन अनाज का भंडार था।
सोवियत संघ का विखंडन अमेरिकी राष्ट्रपति रीगन ने कराया था। वह कहानी बहुत लंबी है। यहाँ की चर्चा का विषय नहीं है। यहाँ इस समय सिर्फ यूक्रेन युद्ध के कारणों की चर्चा अति अति संक्षेप में कर रहे हैं।
सर्वप्रथम तो पैसों के ज़ोर से अमेरिका ने तुर्की के रास्ते यूक्रेन में अफीम व अन्य ड्रग्स की खूब तस्करी करवाई, और वहाँ के अनेक प्रभावशाली लोगों को नशे का आदि बना दिया। फिर एक यहूदी फिल्मी विदूषक जोलोंस्की का बहुत अधिक महिमा मंडन किया गया। फिर ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न कीं कि वहाँ की चुनी हुई सरकार और उनकी पार्टी को बर्खास्त कर दिया गया और वहाँ के चुने हुए प्रधानमंत्री को देश छोड़कर भागना पड़ा। जोलोंस्की के हाथ में सत्ता आ गई और वह वहाँ का तानाशाह बन गया।
सोवियत संघ का जब पतन हुआ था, उस समय यूक्रेन के पास आणविक अस्त्र भी थे जो उसने रूस को लौटा दिये थे। जोलोंस्की यूक्रेन को NATO का सदस्य बनाना चाहता था। रूस के साथ मुख्य मतभेद यही था। यूक्रेन अगर NATO का सदस्य बन जाता तो रूस की सारी सुरक्षा व्यवस्था ध्वस्त हो जाती। अमेरिका का उद्देश्य यूक्रेन के माध्यम से रूस को हराकर रूस के संसाधनों की लूट था।
फिर जोलोंस्की के यूक्रेन में एक नस्लवादी ओजोव बटालियन का गठन किया गया जिसने रूसी बहुल क्षेत्रों में रूसी नागरिकों का नर-संहार आरंभ कर दिया। छोटे छोटे रूसी बच्चों को भी बड़ी निर्दयता से मारा गया। रूस में शरणार्थियों की बाढ़ सी आ गई। उस समय क्रीमिया की संसद ने बहुमत से प्रस्ताव पास कर स्वयं को रूस का भाग घोषित कर दिया। दोनेत्स्क और लुबांस्क नाम के रूसी बहुल प्रान्तों ने भी स्वयं को स्वतंत्र देश घोषित कर दिया, जिसे रूस ने मान्यता दे दी। इन परिस्थितियों में रूस को बाध्य होकर यह युद्ध आरंभ करना पड़ा।
(क्रीमिया का इतिहास संक्षेप में बाद में कभी लिखूंगा। पहले भी एक बार लिखा है। दोनेत्स्क और लुबांस्क के बारे में भी दुबारा फिर कभी लिखूंगा।) इति॥
कृपा शंकर
४ नवंबर २०२४
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