आत्मानुसंधान ---
जिस तरह का वातावरण और परिस्थितियाँ मेरे चारों ओर हैं, वे मेरे ही पूर्व कर्मोँ का परिणाम है, अतः किसी भी तरह की कोई शिकायत, आलोचना और निंदा करने का मुझे कोई अधिकार नहीं है। मैं जहाँ भी हूँ वहीं सारे देवी-देवता, सारे तीर्थ, और स्वयं परमात्मा हैं। अतः मेरी कोई स्वेच्छा नहीं है। जो परमात्मा की इच्छा है, वही मेरी इच्छा है। जो परमात्मा का है, वही मेरा है, मैं और मेरे आराध्य एक हैं, उनसे मेरा कोई भेद नहीं है।
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गीता में भगवान श्री कृष्ण ने जिस "ब्राह्मी-स्थिति" और "कूटस्थ" की बात की है, वे ही मेरे साधन हैं जो मुझे पार लगायेंगे, और स्वयं परमात्मा ही मेरे लक्ष्य हैं, जिनका मैं अनुसंधान कर रहा हूँ। किसी भी तरह के वाद-विवाद और बहस का यहाँ कोई स्थान नहीं है, क्योंकि मेरी सोच स्पष्ट और संशयहीन है। परमात्मा की इच्छा से ही मैं यहाँ हूँ, और ज़ब भी उनकी इच्छा होगी उसी क्षण यहाँ से चला जाऊँगा।
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समय समय पर अपने विचार यहाँ व्यक्त करता रहूँगा। सर्वदा सर्वत्र व्याप्त भगवान नारायण को नमन!!
ॐ तत्सत्!! ॐ ॐ ॐ!!
८ अक्टूबर २०२४
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