Sunday, 10 November 2024

बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति ---

यह संसार महामाया का ही खेल है। बड़े बड़े ज्ञानियों को भी यह महामाया बलात् मोह में पटक देती है। आजकल संसार के सारे लड़ाई, झगड़े और विवाद यह महामाया ही करवा रही है। संसारी व्यक्ति तो असहाय हैं।

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परब्रह्म परमात्मा की परम कृपा से ही हम महामाया से पार पा सकते हैं, निज बल से नहीं। इससे बचने के लिए वर्तमान समय में सबसे अच्छा उपाय श्रीमद्भगवद्गीता का नित्य नियमित पाठ है। इससे आप भगवान की दृष्टि में रहेंगे। यह भगवान का वचन है।
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भगवान का निरंतर स्मरण करने का अभ्यास करें। गीता के नित्य कम से कम एक से पांच श्लोक अर्थ सहित पढ़ें। समझ में आये तो ठीक और न समझ में आये तो भी ठीक। भगवान को पूर्ण रूप से हृदय में बैठाकर, अन्य सब ओर से ध्यान हटाने का अभ्यास करें। किसी भी अन्य विचार को मन में आने ही न दें, इसका अभ्यास करें। कभी कभी पूर्ण रूप से मानसिक मौन का अभ्यास करें। परमात्मा को छोडकर अन्य सब प्रकार के चिंतन को रोकने का अभ्यास करना होगा। बाहरी उपायों में बाहरी व भीतरी पवित्रता का ध्यान रखना होगा, विशेषकर के भोजन सम्बन्धी। पीछे नहीं हटना है, आगे चलते ही रहना है। आगे का मार्गदर्शन भगवान स्वयं करेंगे।
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
११ अक्टूबर २०२४ .
पुनश्च: ---- संसार जिन समस्याओं से जूझ रहा है, उनका कारण जानने की जिज्ञासा थी। मेरा मन कुछ विचलित सा हो गया था। परमात्मा की चेतना में, और व्यवहारिक सामाजिक जीवन में संतुलन बना कर रखना बड़ा कठिन हो रहा था। अनेक प्रबल व्यावहारिक कठिनाइयाँ आ रही थीं। भगवती से प्रार्थना की तो उन्होंने उत्तर भी तुरंत दे दिया। इस लेख का जो शीर्षक है, वह सामने आया और सारी बात आन्तरिक रूप से मुझे समझा दी गयीं। मुझे पूरी संतुष्टि है।
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एक अबोध शिशु जब मल-मूत्र रूपी विष्ठा में पड़ा होता है तब माँ ही उसे स्वच्छ कर सकती है। अपने आप तो वह उज्ज्वल नहीं हो सकता। यह सांसारिकता भी किसी मल-मूत्र रुपी विष्ठा से कम नहीं है। यह माया-मोह रूपी घोर नर्ककुंड भी भगवती की ही रचना है। कोई भी माता अपनी संतान को दुःखी देखकर सुखी नहीं रह सकतीं।
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हमें ज्ञान नहीं, उनका पूर्ण प्रेम चाहिए, जिस पर हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है। भगवती का प्रेम भी तभी मिलेगा जब हमारा समर्पण सत्यनिष्ठा से होगा। आगे के प्रश्नों के उत्तर स्वयं भगवती से ही पूछिए। वे हर प्रश्न का उत्तर स्वयं देंगी।
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!

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