हृदय की यह वेदना स्वतः ही फूट पड़ती है .....
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हे प्रभु, हमारे में तो इतनी शक्ति नहीं है कि आपकी इस दुस्तर माया को पार कर सकें| आप ही अनुग्रह कर के हमारी रक्षा करें और अपने श्रीचरणों में आश्रय दें| हमारे में इतनी सामर्थ्य नहीं है कि अंत समय में आपका स्मरण कर सकें| यह देह तो भस्म हो जाएगी आप ही अनुग्रह कर के हमारा स्मरण कर लेना| आपकी कृपा हमें पार लगा देगी| हम आपकी कृपा और अनुग्रह पर ही निर्भर हैं|
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हे प्रभु, हमारे में तो इतनी शक्ति नहीं है कि आपकी इस दुस्तर माया को पार कर सकें| आप ही अनुग्रह कर के हमारी रक्षा करें और अपने श्रीचरणों में आश्रय दें| हमारे में इतनी सामर्थ्य नहीं है कि अंत समय में आपका स्मरण कर सकें| यह देह तो भस्म हो जाएगी आप ही अनुग्रह कर के हमारा स्मरण कर लेना| आपकी कृपा हमें पार लगा देगी| हम आपकी कृपा और अनुग्रह पर ही निर्भर हैं|
"वायुरनिलममृतमथेदं भस्मांतं शरीरम्| ॐ क्रतो स्मर कृतं स्मर क्रतो स्मर कृतं स्मर||"
(ईशावास्योपनिषद मंत्र १७)
मेरा प्राण सर्वात्मक वायु रूप सूत्रात्मा को प्राप्त हो क्योकि वह शरीरों में आने जाने वाला जीव अमर है; और यह शरीर केवल भस्म पर्यन्त है इसलिये अन्त समय में हे मन ! ॐ का स्मरण कर, अपने द्वारा किए हुये कर्मों का स्मरण कर, ॐ का स्मरण कर, अपने द्वारा किये हुए कर्मों का स्मरण कर||
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गीता में आप ने ही कहा है .....
"अपि चेत्सुदुराचारो भजते मामनन्यभाक्| साधुरेव स मन्तव्यः सम्यग्व्यवसितो हि सः||९:३०||"
अर्थात यदि कोई अतिशय दुराचारी भी अनन्यभाव से मेरा भक्त होकर मुझे भजता है तो वह साधु ही मानने योग्य है, क्योंकि वह यथार्थ निश्चय वाला है||
(ईशावास्योपनिषद मंत्र १७)
मेरा प्राण सर्वात्मक वायु रूप सूत्रात्मा को प्राप्त हो क्योकि वह शरीरों में आने जाने वाला जीव अमर है; और यह शरीर केवल भस्म पर्यन्त है इसलिये अन्त समय में हे मन ! ॐ का स्मरण कर, अपने द्वारा किए हुये कर्मों का स्मरण कर, ॐ का स्मरण कर, अपने द्वारा किये हुए कर्मों का स्मरण कर||
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गीता में आप ने ही कहा है .....
"अपि चेत्सुदुराचारो भजते मामनन्यभाक्| साधुरेव स मन्तव्यः सम्यग्व्यवसितो हि सः||९:३०||"
अर्थात यदि कोई अतिशय दुराचारी भी अनन्यभाव से मेरा भक्त होकर मुझे भजता है तो वह साधु ही मानने योग्य है, क्योंकि वह यथार्थ निश्चय वाला है||
"मच्चित्तः सर्वदुर्गाणि मत्प्रसादात्तरिष्यसि| अथ चेत्त्वमहङ्कारान्न श्रोष्यसि विनङ्क्ष्यसि||१८:५८||"
अर्थात मच्चित्त होकर तुम मेरी कृपा से समस्त कठिनाइयों (सर्वदुर्गाणि) को पार कर जाओगे और यदि अहंकारवश (इस उपदेश को) नहीं सुनोगे, तो तुम नष्ट हो जाओगे||
अर्थात मच्चित्त होकर तुम मेरी कृपा से समस्त कठिनाइयों (सर्वदुर्गाणि) को पार कर जाओगे और यदि अहंकारवश (इस उपदेश को) नहीं सुनोगे, तो तुम नष्ट हो जाओगे||
"अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते| तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्||९:२२||"
अर्थात अनन्य भाव से मेरा चिन्तन करते हुए जो भक्तजन मेरी ही उपासना करते हैं, उन नित्ययुक्त पुरुषों का योगक्षेम मैं वहन करता हूँ||
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
२० अक्तूबर २०१९
अर्थात अनन्य भाव से मेरा चिन्तन करते हुए जो भक्तजन मेरी ही उपासना करते हैं, उन नित्ययुक्त पुरुषों का योगक्षेम मैं वहन करता हूँ||
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
२० अक्तूबर २०१९
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