Thursday, 31 October 2019

भगवान की भक्ति ही सर्वश्रेष्ठ है .....

भगवान की भक्ति ही सर्वश्रेष्ठ है .....
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हरिःकृपा से मुझे सनातन धर्म के विभिन्न संप्रदायों के अच्छे से अच्छे संत-महात्माओं के सत्संग का अवसर मिला है| हर संप्रदाय में अच्छे से अच्छे विद्वान और परोपकारी तपस्वी महात्मा हैं, इसलिये मैं किसी संप्रदाय की या किसी संत-महात्मा की निंदा नहीं करता| मानवीय कमजोरी तो सभी में होती हैं, हम स्वयं भी उस से मुक्त नहीं हैं, अतः जो बात अच्छी नहीं लगती हो वह निज जीवन में नहीं आनी चाहिए, पर सार की बात सभी की ग्रहण कर लेनी चाहिए| सबसे बड़ी सार की बात है .... "भगवान से परमप्रेम यानि भक्ति, और भगवान को पाने की अभीप्सा|" इस से अधिक बड़ी कोई दूसरी बात नहीं है| कोई यह कहे कि उसका मत ही सही है और बाकी सब गलत, तो ऐसे व्यक्तियों से उसी क्षण दूर हट जाना चाहिए| अपनी स्वयं की गुरु-परंपरा, आस्था और उद्देश्य के प्रति मैं निष्ठावान और पूर्णतः समर्पित हूँ|
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अब तो सारी प्रेरणा, मार्गदर्शन और ज्ञान, भगवान की परम कृपा से प्रत्यक्ष उन्हीं से मिल जाता है| बौद्धिक स्तर पर कहीं भी किसी भी तरह की कोई शंका और संदेह नहीं है| छोटी से छोटी हर तरह की जिज्ञासा की पूर्ति भगवान स्वयं कर देते हैं, अतः पूर्ण संतोष और तृप्ति है| कहीं भी इधर-उधर देखने की आवश्यकता नहीं है| अपनी इस वर्तमान शारीरिक आयु में इस स्वास्थ्य के साथ किसी भी तरह की भागदौड़ और बड़ी गतिविधी अब संभव नहीं है| इस लिए अकेला ही हूँ और अकेला ही आनंदमय, संतुष्ट और तृप्त रहूँगा, किसी भी तरह की कोई आकांक्षा नहीं है|
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साधना के क्षेत्र में मेरा अनुभव यह है कि शब्द ब्रह्म प्रणव सबसे बड़ा मंत्र है, और आत्मानुसंधान सबसे बड़ा तंत्र| बीज मंत्रों, नाद, कुंडलिनी जागरण, चक्रभेद, व विभिन्न मुद्राओं और साधनाओं आदि का ज्ञान भगवान स्वयं किसी न किसी माध्यम से करा देते हैं| अतः सारा ध्यान भक्ति पर ही होना चाहिए| भक्ति से ही ज्ञान और वैराग्य का जन्म होता है| गीता में भगवान ने जिस अनन्य अव्यभिचारिणी भक्ति को बताया है, वह सर्वश्रेष्ठ है .....
"मयि चानन्ययोगेन भक्तिरव्यभिचारिणी|
विविक्तदेशसेवित्वमरतिर्जनसंसदि||१३::११||"
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जैसे जैसे भौतिक आयु बढ़ती जा रही है, इस शरीर, मन और बुद्धि की क्षमता भी कम होती जा रही है| धीरे धीरे सब और से ध्यान हटा कर भगवान में ही अब लगाना है| जिस दिन भी ईश्वर की इच्छा होगी उस दिन व उस क्षण यह जीवात्मा ब्रह्मरंध्र को भेदकर इस देह से मुक्त हो परमशिव में विलीन हो जाएगी|
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आनंद ही आनंद और मंगल ही मंगल है| हे सर्वव्यापी परमशिव आपकी जय हो| सभी का कल्याण हो| ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ नमः शिवाय ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२३ अक्तूबर २०१९

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