ॐ जय जगदीश हरे .....
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आजकल घर-घर में और हर मंदिर में गाई जाने वाली प्रसिद्ध कालजयी आरती .... "ओम जय जगदीश हरे" के रचयिता पं. श्रद्धाराम शर्मा फिल्लौरी थे जिन्होंने सन १८७० ई. में इस आरती की रचना की| अगले ग्यारह वर्षों में यह आरती पूरे भारत में प्रचलित हो गई| सन १८६५ ई.में अंग्रेज़ सरकार ने उन पर एक पाबंदी लगाकर उन्हें उनके जिले से निष्काषित कर दिया था जिसके बाद वे पूरे भारत में घूम-घूम कर कथावाचन का कार्य करने लगे| हर कथा के अंत में वे यह आरती अवश्य गाते| इस तरह उनकी यह आरती पूरे भारत में प्रचलित हो गई|
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उनका जन्म पंजाब के जालंधर जिले के फिल्लौर नगर में हुआ था| पं. श्रद्धाराम शर्मा फिल्लौरी एक धर्म-प्रचारक, ज्योतिषी, स्वतंत्रता सेनानी, संगीतज्ञ तथा हिन्दी और पंजाबी के प्रसिद्ध साहित्यकार थे| वे संस्कृत, हिन्दी, पंजाबी और फ़ारसी भाषाओं के विद्वान तथा ज्योतिष में पारंगत थे| उन्होने पंजाबी में "सिक्खां दे राज दी विथियाँ" और "पंजाबी बातचीत" नाम की पुस्तकें लिखी थीं जो पंजाब में अत्यधिक लोकप्रिय हुईं| हिन्दी भाषा में उन्होने "भाग्यवती" नामक एक उपन्यास सन १८७७ ई. में लिखा जिसे कई समीक्षक हिन्दी भाषा का प्रथम उपन्यास बताते हैं| २४ जून सन १८८१ ई.को लाहौर में उनका निधन हो गया| उनके निधन के बाद ही उनकी धर्मपत्नी ने यह उपन्यास छपवाया था| वे आत्म-प्रशंसा और प्रचार से दूर रहे थे, शायद इसीलिए लोग उनके बारे में कम जानते हैं| ऐसे संत को नमन!
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आजकल घर-घर में और हर मंदिर में गाई जाने वाली प्रसिद्ध कालजयी आरती .... "ओम जय जगदीश हरे" के रचयिता पं. श्रद्धाराम शर्मा फिल्लौरी थे जिन्होंने सन १८७० ई. में इस आरती की रचना की| अगले ग्यारह वर्षों में यह आरती पूरे भारत में प्रचलित हो गई| सन १८६५ ई.में अंग्रेज़ सरकार ने उन पर एक पाबंदी लगाकर उन्हें उनके जिले से निष्काषित कर दिया था जिसके बाद वे पूरे भारत में घूम-घूम कर कथावाचन का कार्य करने लगे| हर कथा के अंत में वे यह आरती अवश्य गाते| इस तरह उनकी यह आरती पूरे भारत में प्रचलित हो गई|
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उनका जन्म पंजाब के जालंधर जिले के फिल्लौर नगर में हुआ था| पं. श्रद्धाराम शर्मा फिल्लौरी एक धर्म-प्रचारक, ज्योतिषी, स्वतंत्रता सेनानी, संगीतज्ञ तथा हिन्दी और पंजाबी के प्रसिद्ध साहित्यकार थे| वे संस्कृत, हिन्दी, पंजाबी और फ़ारसी भाषाओं के विद्वान तथा ज्योतिष में पारंगत थे| उन्होने पंजाबी में "सिक्खां दे राज दी विथियाँ" और "पंजाबी बातचीत" नाम की पुस्तकें लिखी थीं जो पंजाब में अत्यधिक लोकप्रिय हुईं| हिन्दी भाषा में उन्होने "भाग्यवती" नामक एक उपन्यास सन १८७७ ई. में लिखा जिसे कई समीक्षक हिन्दी भाषा का प्रथम उपन्यास बताते हैं| २४ जून सन १८८१ ई.को लाहौर में उनका निधन हो गया| उनके निधन के बाद ही उनकी धर्मपत्नी ने यह उपन्यास छपवाया था| वे आत्म-प्रशंसा और प्रचार से दूर रहे थे, शायद इसीलिए लोग उनके बारे में कम जानते हैं| ऐसे संत को नमन!
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ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे |
भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे | ॐ जय जगदीश हरे ||
जो ध्यावे फल पावे, दुःखबिन से मन का,
सुख सम्पति घर आवे, कष्ट मिटे तन का | ॐ जय जगदीश हरे ||
मात पिता तुम मेरे, शरण गहूं किसकी,
तुम बिन और न दूजा, आस करूं मैं जिसकी | ॐ जय जगदीश हरे ||
तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी,
पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सब के स्वामी | ॐ जय जगदीश हरे ||
तुम करुणा के सागर, तुम पालनकर्ता,
मैं मूरख फलकामी, कृपा करो भर्ता | ॐ जय जगदीश हरे ||
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति,
किस विधि मिलूं दयामय, तुमको मैं कुमति | ॐ जय जगदीश हरे ||
दीन-बन्धु दुःख-हर्ता, ठाकुर तुम मेरे,
अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे | ॐ जय जगदीश हरे ||
विषय-विकार मिटाओ, पाप हरो देवा,
श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ, सन्तन की सेवा | ॐ जय जगदीश हरे ||
ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे |
भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे | ॐ जय जगदीश हरे ||
जो ध्यावे फल पावे, दुःखबिन से मन का,
सुख सम्पति घर आवे, कष्ट मिटे तन का | ॐ जय जगदीश हरे ||
मात पिता तुम मेरे, शरण गहूं किसकी,
तुम बिन और न दूजा, आस करूं मैं जिसकी | ॐ जय जगदीश हरे ||
तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी,
पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सब के स्वामी | ॐ जय जगदीश हरे ||
तुम करुणा के सागर, तुम पालनकर्ता,
मैं मूरख फलकामी, कृपा करो भर्ता | ॐ जय जगदीश हरे ||
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति,
किस विधि मिलूं दयामय, तुमको मैं कुमति | ॐ जय जगदीश हरे ||
दीन-बन्धु दुःख-हर्ता, ठाकुर तुम मेरे,
अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे | ॐ जय जगदीश हरे ||
विषय-विकार मिटाओ, पाप हरो देवा,
श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ, सन्तन की सेवा | ॐ जय जगदीश हरे ||
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