Saturday, 19 October 2019

"संसार में जिसे हम ढूंढ रहे हैं वह तो हम स्वयं ही हैं".....

"संसार में जिसे हम ढूंढ रहे हैं वह तो हम स्वयं ही हैं".....
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यह मेरा अपना निजी अनुभव है कोई कपोल-कल्पना नहीं| मेरा सारा जीवन एक अंतहीन भागदौड़ था, जिस में मैंने दिन-रात एक किए, खूब खून-पसीना बहाया, आकाश-पाताल एक किए, और पूरी दुनियाँ की खाक छानी, पर मिला क्या? कुछ भी नहीं| बाहर के कामों को सलटाते सलटाते मैं स्वयं ही सलट गया| कहीं भी तृप्ति और संतुष्टि नहीं मिली| पूर्व जन्मों के कुछ अच्छे कर्मफलों से हृदय में एक अभीप्सा जागृत हुई जिसने जीवन की चिंतनधारा को एक नई दिशा दी, पर हृदय अशांत ही रहा|
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अंत में भगवान से प्रार्थना की तो उनकी परम कृपा से पता चला कि जिस सुख और आनंद को मैं बाहर ढूंढ रहा था वह तो मैं स्वयं ही हूँ| वह आनंद न तो भीतर है और न बाहर, वह तो मैं स्वयं हूँ| बाहर और भीतर की खोज एक पराधीनता है, और पराधीन को स्वप्न में भी सुख नहीं मिल सकता| अपने सच्चिदानंद आत्म-तत्व रूपी सत्य को व्यक्त करना ही अब इस जीवन का ध्येय है| उस सच्चिदानंद के अतिरिक्त अन्य सब असत्य/मिथ्या है, यह मेरा अपना निजी अनुभव है|
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जो कुछ भी मैंने लिखा है यह अपने हृदय की भावनाओं की अभिव्यक्ति मात्र है, कोई अपनी महता नहीं| यह स्वयं से स्वयं का एक सत्संग मात्र है, किसी से कोई अपेक्षा नहीं|
"ॐ सच्चिदानंदरूपाय नमोस्तु परमात्मने| ज्योतिर्मयस्वरूपाय विश्वमांगल्यमूर्तये||
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१० अक्तूबर २०१९

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