परमात्मा की प्रेममय अनंतता ही हमारा अस्तित्व हो सकती है ....
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जन्म और मृत्यु की चेतना से परे परमात्मा की प्रेममय अनंतता ही हमारा अस्तित्व हो सकती है, उससे कम तो कुछ भी नहीं| संत-महात्माओं के मुख से सुना है कि हमारी सूक्ष्म देह में अज्ञान रुपी तीन ग्रंथियाँ होती हैं ..... ब्रह्मग्रंथि (मूलाधार में), विष्णुग्रंथि (अनाहत में) और रूद्रग्रंथि (आज्ञाचक्र में) जिनका भेदन किए बिना अज्ञान नष्ट नहीं होता| इसका वर्णन देव्याथर्वशीर्ष में भी बताते है|
यह विषय एक गोपनीय विषय है क्योंकि इसमें ऐसी योग साधना है जहाँ यम-नियमों का पालन अनिवार्य है| यहाँ गुरुमुखी (गुरुमुख से बताई हुई) साधना ही काम आती है| आचार्य गुरु भी वही हो सकता है जो श्रौत्रीय और ब्रह्मनिष्ठ हो| अतः किसी श्रौत्रीय ब्रहमनिष्ठ सिद्ध सद्गुरु से ही मार्गदर्शन प्राप्त करें, हर किसी से नहीं|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
१२ अक्तूबर २०१९
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जन्म और मृत्यु की चेतना से परे परमात्मा की प्रेममय अनंतता ही हमारा अस्तित्व हो सकती है, उससे कम तो कुछ भी नहीं| संत-महात्माओं के मुख से सुना है कि हमारी सूक्ष्म देह में अज्ञान रुपी तीन ग्रंथियाँ होती हैं ..... ब्रह्मग्रंथि (मूलाधार में), विष्णुग्रंथि (अनाहत में) और रूद्रग्रंथि (आज्ञाचक्र में) जिनका भेदन किए बिना अज्ञान नष्ट नहीं होता| इसका वर्णन देव्याथर्वशीर्ष में भी बताते है|
यह विषय एक गोपनीय विषय है क्योंकि इसमें ऐसी योग साधना है जहाँ यम-नियमों का पालन अनिवार्य है| यहाँ गुरुमुखी (गुरुमुख से बताई हुई) साधना ही काम आती है| आचार्य गुरु भी वही हो सकता है जो श्रौत्रीय और ब्रह्मनिष्ठ हो| अतः किसी श्रौत्रीय ब्रहमनिष्ठ सिद्ध सद्गुरु से ही मार्गदर्शन प्राप्त करें, हर किसी से नहीं|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
१२ अक्तूबर २०१९
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