"भगवती भद्रकाली शक्ति पीठ" का भ्रमण और एक विलक्षण सिद्ध महात्मा से सत्संग ......
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कल मंगलवार ८ अक्तूबर २०१९ को विजयदशमी के दिन माँ भगवती से प्रेरणा हुई राजस्थान के चुरू जिले के राजलदेसर नगर में स्थित "भगवती भद्रकाली शक्ति पीठ" में भगवती के दर्शन और वहाँ के पीठाधीश्वर श्रीमद् दंडीस्वामी जोगेन्द्राश्रम जी महाराज से सत्संग करने की| मैं रात्रि में काम आने वाले कपड़ों की एक जोड़ी और कुछ अन्य आवश्यक सामान ब्रीफ़ केस में डालकर दोपहर साढ़े बारह बजे झुञ्झुणु से बीकानेर जाने वाली बस से चलकर ढाई घंटों की बस यात्रा के पश्चात राजलदेसर लगभग तीन बजे पहुँच गया| वहाँ आने की सूचना किसी माध्यम से भिजवा दी थी| एक ऑटो कर के सिमसिमिया रोड़ पर स्थित शक्ति पीठ पर गया| वहाँ स्वामीजी बाहर एक हॉल में बैठे हुए पाँच-छः जिज्ञासुओं से चर्चा कर रहे थे| मेरे वहाँ आगमन से वे बड़े प्रसन्न हुए| कुछ देर बाद जब सारे जिज्ञासु चले गए तब वे मुझे भीतर अपनी बैठक में ले गये|
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अपनी अंतर्प्रज्ञा से मुझे अहसास हो गया कि इस प्रथम भेंट में ही स्वामीजी मेरे बारे में सब कुछ जानते हैं, उन्हें किसी औपचारिक परिचय की या मुझ से कुछ पूछने की आवश्यकता नहीं है| मैं भी सतर्क हो गया कि बातों ही बातों में कोई भी झूठी और अनावश्यक बात भूल से भी मेरे मुंह से नहीं निकल जाये|
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स्वामीजी सब समझ रहे थे कि मेरे अन्तर्मन में क्या चल रहा है और मैं क्या सोच रहा हूँ| दो घंटों तक उन्होनें वेदान्त के दृष्टिकोण से मुझे समझाकर मेरे हृदय को शांत किया| मुझे भी लगा कि मैं सही स्थान पर और सही सिद्ध संत से सत्संग लाभ ले रहा हूँ| रात्री को नौ बजे से हमारा सत्संग उनकी बैठक में दुबारा प्रारम्भ हुआ| उनके चार और भक्त हनुमानगढ़ से आए हुए थे| स्वामी जी ने हमें आदेश दिया कुछ भी पूछने का| मैंने अपनी कुछ जिज्ञासाएँ उनके समक्ष रखीं जिन का सटीक शास्त्रोक्त उत्तर उन्होने अपने अनुभव से दिया| फिर स्वयं उन्होने अपनी ओर से कई गूढ तत्व की बातें समझाईं जिनकी सार्वजनिक चर्चा नहीं की जाती| यह सत्संग बहुत लंबा आठ-नौ घंटों तक चला जिसमें समय की चेतना ही नहीं रही|
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बहुत अच्छा और लंबा सत्संग चल रहा था| समय की चेतना ही नहीं रही| जब घड़ी में समय देखा तो प्रातः के पाँच बज रहे थे| बड़ा ही लंबा, रहस्यमय और गूढ सत्संग हुआ| मैंने अनुभूत किया कि स्वामी जी में ज्ञान, भक्ति और वैराग्य .... तीनों कूट कूट कर भरे हुए हैं| यह भी अनुभूत किया कि उन पर माँ भगवती की पूर्ण कृपा है|
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आज प्रातःकाल मुझे लगने लगा कि यदि मैं आधे घंटे और इस आश्रम में रह लिया तो फिर कभी भी इस जीवन में बापस संसार में नहीं जा पाऊँगा, और विरक्त होकर यहीं सन्यासी बन जाऊँगा| जब मैं चलने लगा तो स्वामी जी ने तो आज्ञा नहीं दी, उनका आदेश तो था कि मैं वहीं रहूँ| पर घर पर कुछ आवश्यक कार्य सलटाने थे इसलिए क्षमा निवेदन कर के जबर्दस्ती बापस लौट आया| मुझे लगता है मैंने गलत ही किया, मुझे वहीं रहना चाहिए था| अपनी मूर्खता और गलत निर्णय के लिए श्रद्धेय स्वामीजी से क्षमा याचना करता हूँ| ऋषिकेश के ब्रह्मचारी शिवेंद्र स्वरूप जी भी वहीं मिल गये| वे बापस ऋषिकेश जा रहे थे| कुछ वर्षों से उनसे मेरी अच्छी मित्रता है| अपनी गाड़ी से उन्होने मुझे चुरू तक छोड़ दिया जहाँ से मैं बस द्वारा घर झुञ्झुणु आ गया|
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घोर आश्चर्य तो मुझे तब हुआ जब घर वालों ने कहा कि इतनी जल्दी बापस क्यों आ गये? सब ने कहा कि जब सत्संग के उद्देश्य से गये थे तो चार-पाँच दिन तो कम से कम वहीं रहना था| अब निकट भविष्य मैं स्वामी जी के सत्संग में बापस अवश्य जाऊंगा| अबकी बार ये महात्मा मुझे वैराग्य और सन्यास का आदेश देंगे, तो तत्क्षण स्वीकार लूँगा|
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ॐ तत्सत ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
९ अक्तूबर २०१९
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कल मंगलवार ८ अक्तूबर २०१९ को विजयदशमी के दिन माँ भगवती से प्रेरणा हुई राजस्थान के चुरू जिले के राजलदेसर नगर में स्थित "भगवती भद्रकाली शक्ति पीठ" में भगवती के दर्शन और वहाँ के पीठाधीश्वर श्रीमद् दंडीस्वामी जोगेन्द्राश्रम जी महाराज से सत्संग करने की| मैं रात्रि में काम आने वाले कपड़ों की एक जोड़ी और कुछ अन्य आवश्यक सामान ब्रीफ़ केस में डालकर दोपहर साढ़े बारह बजे झुञ्झुणु से बीकानेर जाने वाली बस से चलकर ढाई घंटों की बस यात्रा के पश्चात राजलदेसर लगभग तीन बजे पहुँच गया| वहाँ आने की सूचना किसी माध्यम से भिजवा दी थी| एक ऑटो कर के सिमसिमिया रोड़ पर स्थित शक्ति पीठ पर गया| वहाँ स्वामीजी बाहर एक हॉल में बैठे हुए पाँच-छः जिज्ञासुओं से चर्चा कर रहे थे| मेरे वहाँ आगमन से वे बड़े प्रसन्न हुए| कुछ देर बाद जब सारे जिज्ञासु चले गए तब वे मुझे भीतर अपनी बैठक में ले गये|
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अपनी अंतर्प्रज्ञा से मुझे अहसास हो गया कि इस प्रथम भेंट में ही स्वामीजी मेरे बारे में सब कुछ जानते हैं, उन्हें किसी औपचारिक परिचय की या मुझ से कुछ पूछने की आवश्यकता नहीं है| मैं भी सतर्क हो गया कि बातों ही बातों में कोई भी झूठी और अनावश्यक बात भूल से भी मेरे मुंह से नहीं निकल जाये|
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स्वामीजी सब समझ रहे थे कि मेरे अन्तर्मन में क्या चल रहा है और मैं क्या सोच रहा हूँ| दो घंटों तक उन्होनें वेदान्त के दृष्टिकोण से मुझे समझाकर मेरे हृदय को शांत किया| मुझे भी लगा कि मैं सही स्थान पर और सही सिद्ध संत से सत्संग लाभ ले रहा हूँ| रात्री को नौ बजे से हमारा सत्संग उनकी बैठक में दुबारा प्रारम्भ हुआ| उनके चार और भक्त हनुमानगढ़ से आए हुए थे| स्वामी जी ने हमें आदेश दिया कुछ भी पूछने का| मैंने अपनी कुछ जिज्ञासाएँ उनके समक्ष रखीं जिन का सटीक शास्त्रोक्त उत्तर उन्होने अपने अनुभव से दिया| फिर स्वयं उन्होने अपनी ओर से कई गूढ तत्व की बातें समझाईं जिनकी सार्वजनिक चर्चा नहीं की जाती| यह सत्संग बहुत लंबा आठ-नौ घंटों तक चला जिसमें समय की चेतना ही नहीं रही|
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बहुत अच्छा और लंबा सत्संग चल रहा था| समय की चेतना ही नहीं रही| जब घड़ी में समय देखा तो प्रातः के पाँच बज रहे थे| बड़ा ही लंबा, रहस्यमय और गूढ सत्संग हुआ| मैंने अनुभूत किया कि स्वामी जी में ज्ञान, भक्ति और वैराग्य .... तीनों कूट कूट कर भरे हुए हैं| यह भी अनुभूत किया कि उन पर माँ भगवती की पूर्ण कृपा है|
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आज प्रातःकाल मुझे लगने लगा कि यदि मैं आधे घंटे और इस आश्रम में रह लिया तो फिर कभी भी इस जीवन में बापस संसार में नहीं जा पाऊँगा, और विरक्त होकर यहीं सन्यासी बन जाऊँगा| जब मैं चलने लगा तो स्वामी जी ने तो आज्ञा नहीं दी, उनका आदेश तो था कि मैं वहीं रहूँ| पर घर पर कुछ आवश्यक कार्य सलटाने थे इसलिए क्षमा निवेदन कर के जबर्दस्ती बापस लौट आया| मुझे लगता है मैंने गलत ही किया, मुझे वहीं रहना चाहिए था| अपनी मूर्खता और गलत निर्णय के लिए श्रद्धेय स्वामीजी से क्षमा याचना करता हूँ| ऋषिकेश के ब्रह्मचारी शिवेंद्र स्वरूप जी भी वहीं मिल गये| वे बापस ऋषिकेश जा रहे थे| कुछ वर्षों से उनसे मेरी अच्छी मित्रता है| अपनी गाड़ी से उन्होने मुझे चुरू तक छोड़ दिया जहाँ से मैं बस द्वारा घर झुञ्झुणु आ गया|
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घोर आश्चर्य तो मुझे तब हुआ जब घर वालों ने कहा कि इतनी जल्दी बापस क्यों आ गये? सब ने कहा कि जब सत्संग के उद्देश्य से गये थे तो चार-पाँच दिन तो कम से कम वहीं रहना था| अब निकट भविष्य मैं स्वामी जी के सत्संग में बापस अवश्य जाऊंगा| अबकी बार ये महात्मा मुझे वैराग्य और सन्यास का आदेश देंगे, तो तत्क्षण स्वीकार लूँगा|
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ॐ तत्सत ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
९ अक्तूबर २०१९
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