सामूहिक घृणा का परिणाम युद्ध होता है| प्रथम और द्वितीय दोनों
विश्वयुद्धों का एकमात्र कारण था ..... "घृणा और लोभ"| जहाँ भी घृणा और लोभ
होगा, वहाँ युद्ध अवश्यंभावी है, उसे कोई नहीं टाल सकता| भगवान श्रीकृष्ण
ने भी महाभारत के युद्ध को टालने के बहुत प्रयास किए पर नहीं टाल सके,
हमारी तो औकात ही क्या है?
वर्तमान में विश्व में घृणा और लोभ इतने अधिक बढ़ गए हैं कि उनका कोई अंत नहीं दिखाई देता| भारत की तो सबसे बड़ी समस्या ही भ्रष्टाचार है| मनुष्य सिर्फ अपनी मृत्यु से ही डरता है अन्य किसी से नहीं| भारत में दुर्भाग्य से स्थिति ऐसी बन गयी है कि बिना रिश्वत लिए कोई भी सरकारी कर्मचारी काम नहीं करता, कोई काम करना ही नहीं चाहता, सब को अधर्म का धन चाहिए| लोग नौकरी करते हैं सिर्फ वेतन के लिए, काम करने के लिए नहीं| काम करने के लिए रिश्वत चाहिए| सबकी दृष्टि पराये धन पर ही रहती है| ऐसे समाज और सभ्यता का पूरा विनाश ही हो जाना चाहिए| धर्म तो रहा ही नहीं है, अधर्म ही अधर्म है| चाहे आप किसी न्यायालय में जा कर देख लो, वहाँ भी सबकी गिद्ध-दृष्टि दिखाई देती है, सब की दृष्टि पराये धन पर रहती है| अतः यह समाज भी नष्ट होगा और नए सिरे से बसेगा तभी धर्म की पुनर्स्थापना होगी| वर्तमान परिस्थितियों में मुझे लगता है कि विनाश का प्रारम्भ पश्चिमी एशिया से ही होगा, जो आरंभ हो चुका है|
ॐ तत्सत् !
१५ अक्तूबर २०१९
वर्तमान में विश्व में घृणा और लोभ इतने अधिक बढ़ गए हैं कि उनका कोई अंत नहीं दिखाई देता| भारत की तो सबसे बड़ी समस्या ही भ्रष्टाचार है| मनुष्य सिर्फ अपनी मृत्यु से ही डरता है अन्य किसी से नहीं| भारत में दुर्भाग्य से स्थिति ऐसी बन गयी है कि बिना रिश्वत लिए कोई भी सरकारी कर्मचारी काम नहीं करता, कोई काम करना ही नहीं चाहता, सब को अधर्म का धन चाहिए| लोग नौकरी करते हैं सिर्फ वेतन के लिए, काम करने के लिए नहीं| काम करने के लिए रिश्वत चाहिए| सबकी दृष्टि पराये धन पर ही रहती है| ऐसे समाज और सभ्यता का पूरा विनाश ही हो जाना चाहिए| धर्म तो रहा ही नहीं है, अधर्म ही अधर्म है| चाहे आप किसी न्यायालय में जा कर देख लो, वहाँ भी सबकी गिद्ध-दृष्टि दिखाई देती है, सब की दृष्टि पराये धन पर रहती है| अतः यह समाज भी नष्ट होगा और नए सिरे से बसेगा तभी धर्म की पुनर्स्थापना होगी| वर्तमान परिस्थितियों में मुझे लगता है कि विनाश का प्रारम्भ पश्चिमी एशिया से ही होगा, जो आरंभ हो चुका है|
ॐ तत्सत् !
१५ अक्तूबर २०१९
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