सब चिंता भगवान करेंगे, उनका काम ही चिंता करना है .....
.
जिन्होंने इस सृष्टि की रचना की है, उसकी चिंता वे अगम अगोचर अलख अनादि अनंत और अपार ही करेंगे, यह उन्हीं का काम है, हमारा नहीं| हम तो उन की रचना मात्र हैं जिसे वे जीवित रखें या मृत, दुःखी रखें या सुखी ... जैसी उनकी मर्जी| हमारे प्रेम के पात्र वे ही हैं, और उन अदृश्य से ही हमें प्रेम हो गया है| यह देह भी वे हैं, यह प्राण भी वे हैं और यह जीवात्मा भी वे ही हैं| उन्हीं का धर्म हमारा धर्म है| जैसे वे सब तरह के धर्म और अधर्म की रचना कर स्वयं उनसे ऊपर हैं, वैसे ही हम भी सब तरह के धर्म और अधर्म से ऊपर उनके साथ एक होकर साक्षात सच्चिदानंद हैं, यह नश्वर देह नहीं|
.
देह का धर्म और आत्मा का धर्म अलग अलग होता है| यह देह जिससे हमारी चेतना जुड़ी हुई है, उसका धर्म अलग है| भूख प्यास, सर्दी गर्मी और ज़रा-मृत्यु आदि इस देह का धर्म है| आत्मा का धर्म परमात्मा के प्रति आकर्षण और परमात्मा के प्रति परम प्रेम की अभिव्यक्ति ही है, अन्य कुछ भी नहीं| जब जीवन में परमात्मा की कृपा होती है तब सारे गुण स्वतः खिंचे चले आते हैं| उनके लिए किसी पृथक प्रयास की आवश्यकता नहीं है| परमात्मा के प्रति प्रेम ही सबसे बड़ा गुण है जो सब गुणों की खान है|
.
हम अपना ईश्वर प्रदत्त कार्य स्वविवेक के प्रकाश में करें| जहाँ विवेक कार्य नहीं करता वहाँ श्रुतियाँ प्रमाण हैं| भगवान एक गुरु के रूप में मार्गदर्शन करते हैं पर अंततः गुरु एक तत्व बन जाता है जिसे किसी नाम रूप में नहीं बाँध सकते| हमारी जाति, सम्प्रदाय और धर्म वही है जो परमात्मा का है| हमारा एकमात्र सम्बन्ध भी सिर्फ परमात्मा से है, जो सब प्रकार के बंधनों से परे है|
.
परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्ति आप सब को सप्रेम नमन !
ॐ तत्सत् ! अयमात्मा ब्रह्म ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
६ अक्टूबर २०१९
.
जिन्होंने इस सृष्टि की रचना की है, उसकी चिंता वे अगम अगोचर अलख अनादि अनंत और अपार ही करेंगे, यह उन्हीं का काम है, हमारा नहीं| हम तो उन की रचना मात्र हैं जिसे वे जीवित रखें या मृत, दुःखी रखें या सुखी ... जैसी उनकी मर्जी| हमारे प्रेम के पात्र वे ही हैं, और उन अदृश्य से ही हमें प्रेम हो गया है| यह देह भी वे हैं, यह प्राण भी वे हैं और यह जीवात्मा भी वे ही हैं| उन्हीं का धर्म हमारा धर्म है| जैसे वे सब तरह के धर्म और अधर्म की रचना कर स्वयं उनसे ऊपर हैं, वैसे ही हम भी सब तरह के धर्म और अधर्म से ऊपर उनके साथ एक होकर साक्षात सच्चिदानंद हैं, यह नश्वर देह नहीं|
.
देह का धर्म और आत्मा का धर्म अलग अलग होता है| यह देह जिससे हमारी चेतना जुड़ी हुई है, उसका धर्म अलग है| भूख प्यास, सर्दी गर्मी और ज़रा-मृत्यु आदि इस देह का धर्म है| आत्मा का धर्म परमात्मा के प्रति आकर्षण और परमात्मा के प्रति परम प्रेम की अभिव्यक्ति ही है, अन्य कुछ भी नहीं| जब जीवन में परमात्मा की कृपा होती है तब सारे गुण स्वतः खिंचे चले आते हैं| उनके लिए किसी पृथक प्रयास की आवश्यकता नहीं है| परमात्मा के प्रति प्रेम ही सबसे बड़ा गुण है जो सब गुणों की खान है|
.
हम अपना ईश्वर प्रदत्त कार्य स्वविवेक के प्रकाश में करें| जहाँ विवेक कार्य नहीं करता वहाँ श्रुतियाँ प्रमाण हैं| भगवान एक गुरु के रूप में मार्गदर्शन करते हैं पर अंततः गुरु एक तत्व बन जाता है जिसे किसी नाम रूप में नहीं बाँध सकते| हमारी जाति, सम्प्रदाय और धर्म वही है जो परमात्मा का है| हमारा एकमात्र सम्बन्ध भी सिर्फ परमात्मा से है, जो सब प्रकार के बंधनों से परे है|
.
परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्ति आप सब को सप्रेम नमन !
ॐ तत्सत् ! अयमात्मा ब्रह्म ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
६ अक्टूबर २०१९
No comments:
Post a Comment