हमारा स्वधर्म, आध्यात्म और परम आदर्श :---
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हर एक आत्मा का स्वभाविक स्वधर्म है ..... परमात्मा से एकात्मता! इस स्वधर्म की रक्षा का अनवरत प्रयास आध्यात्म कहलाता है| भगवान श्रीकृष्ण के अनुसार इस स्वधर्म में मरना ही श्रेयस्कर, परधर्म बड़ा भयावह है| आध्यात्म कोई व्यक्तिगत मोक्ष, सांसारिक वैभव, इन्द्रीय सुख या अपने अहंकार की तृप्ति की कामना का प्रयास नहीं है| यह कोई दार्शनिक वाद विवाद या बौद्धिक उपलब्धी भी नहीं है|
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भगवान श्रीराम और श्रीकृष्ण हमारे प्राण हैं| उनका जीवन हमारे लिए परम आदर्श है| उन जैसे महापुरुषों के गुणों को स्वयं के जीवन में धारण करना, उन की शिक्षा और आचरण का पालन करना भी एक सच्ची उपासना है| भगवान श्रीराम और श्रीकृष्ण ने जन्म से ही धर्मरक्षार्थ, धर्मसंस्थापनार्थ, व धर्मसंवर्धन हेतु शौर्य संघर्ष व संगठन साधना का आदर्श रखा| सज्जनों की रक्षा और दुर्जनों का विनाश भी हमारा लौकिक धर्म है| भगवान श्री कृष्ण ने गीता का ज्ञान अर्जुन को कुरुक्षेत्र की युद्ध भूमि में दिया, इस प्रसंग के आध्यात्मिक सन्देश को समझें कि रणभूमि में उतरे बिना यानि साधना भूमि में उतरे बिना हम आध्यात्म को, स्वयं के ईश्वर तत्व को उसके यथार्थ स्वरुप में अनुभूत नहीं कर सकते| भगवान श्रीराम ने भी धर्मरक्षार्थ अपने राज्य के वैभव का त्याग किया, और भारत में पैदल भ्रमण कर अत्यंन्त पिछड़ी और उपेक्षित जातियों को जिन्हें लोग तिरस्कार पूर्वक वानर और रीछ तक कह कर पुकारते थे, संगठित कर धर्मविरोधियों का संहार किया| लंका का राज्य स्वयं ना लेकर विभीषण को ही दिया| ऋषि मुनियों की रक्षार्थ ताड़का का वध भी किया| उपरोक्त दोनों ही महापुरुष हजारों वर्षों से हमारे प्रातःस्मरणीय आराध्य हैं| स्वयं के भीतर के राम और कृष्ण-तत्व से एकात्म ही आध्यात्म है, यही सच्ची साधना है, यही शिवत्व की प्राप्ति है|
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ॐ तत्सत ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१९ अगस्त २०१९
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हर एक आत्मा का स्वभाविक स्वधर्म है ..... परमात्मा से एकात्मता! इस स्वधर्म की रक्षा का अनवरत प्रयास आध्यात्म कहलाता है| भगवान श्रीकृष्ण के अनुसार इस स्वधर्म में मरना ही श्रेयस्कर, परधर्म बड़ा भयावह है| आध्यात्म कोई व्यक्तिगत मोक्ष, सांसारिक वैभव, इन्द्रीय सुख या अपने अहंकार की तृप्ति की कामना का प्रयास नहीं है| यह कोई दार्शनिक वाद विवाद या बौद्धिक उपलब्धी भी नहीं है|
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भगवान श्रीराम और श्रीकृष्ण हमारे प्राण हैं| उनका जीवन हमारे लिए परम आदर्श है| उन जैसे महापुरुषों के गुणों को स्वयं के जीवन में धारण करना, उन की शिक्षा और आचरण का पालन करना भी एक सच्ची उपासना है| भगवान श्रीराम और श्रीकृष्ण ने जन्म से ही धर्मरक्षार्थ, धर्मसंस्थापनार्थ, व धर्मसंवर्धन हेतु शौर्य संघर्ष व संगठन साधना का आदर्श रखा| सज्जनों की रक्षा और दुर्जनों का विनाश भी हमारा लौकिक धर्म है| भगवान श्री कृष्ण ने गीता का ज्ञान अर्जुन को कुरुक्षेत्र की युद्ध भूमि में दिया, इस प्रसंग के आध्यात्मिक सन्देश को समझें कि रणभूमि में उतरे बिना यानि साधना भूमि में उतरे बिना हम आध्यात्म को, स्वयं के ईश्वर तत्व को उसके यथार्थ स्वरुप में अनुभूत नहीं कर सकते| भगवान श्रीराम ने भी धर्मरक्षार्थ अपने राज्य के वैभव का त्याग किया, और भारत में पैदल भ्रमण कर अत्यंन्त पिछड़ी और उपेक्षित जातियों को जिन्हें लोग तिरस्कार पूर्वक वानर और रीछ तक कह कर पुकारते थे, संगठित कर धर्मविरोधियों का संहार किया| लंका का राज्य स्वयं ना लेकर विभीषण को ही दिया| ऋषि मुनियों की रक्षार्थ ताड़का का वध भी किया| उपरोक्त दोनों ही महापुरुष हजारों वर्षों से हमारे प्रातःस्मरणीय आराध्य हैं| स्वयं के भीतर के राम और कृष्ण-तत्व से एकात्म ही आध्यात्म है, यही सच्ची साधना है, यही शिवत्व की प्राप्ति है|
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ॐ तत्सत ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१९ अगस्त २०१९
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