मैं तो एक फूल हूँ, मुरझा गया तो मलाल क्यों ?
तुम तो महक हो, हवाओं में जिसे समाना है ...
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भूतकाल चाहे जितना भी दुःखद हो, उसे तो हम बदल नहीं सकते, भविष्य हमारे लिए एक स्वप्न मात्र है| हमारा अधिकार सिर्फ वर्तमान पर है| जैसा भविष्य हम चाहते हैं, वैसे ही वर्तमान का निर्माण करें| यह परिवर्तन स्वयं से हो, वर्तमान हमारे आदर्शों का हो|
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"इंसान मुस्तक़बिल को सोच के अपना हाल ज़ाया करता है |
फिर मुस्तक़बिल में अपना माज़ी याद कर के रोता है ||" (शे.सादी)
तुम तो महक हो, हवाओं में जिसे समाना है ...
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भूतकाल चाहे जितना भी दुःखद हो, उसे तो हम बदल नहीं सकते, भविष्य हमारे लिए एक स्वप्न मात्र है| हमारा अधिकार सिर्फ वर्तमान पर है| जैसा भविष्य हम चाहते हैं, वैसे ही वर्तमान का निर्माण करें| यह परिवर्तन स्वयं से हो, वर्तमान हमारे आदर्शों का हो|
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"इंसान मुस्तक़बिल को सोच के अपना हाल ज़ाया करता है |
फिर मुस्तक़बिल में अपना माज़ी याद कर के रोता है ||" (शे.सादी)
(मुस्तकबिल = भविष्य, माज़ी = भूतकाल, हाल = वर्तमान)
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"यादों को भुलाने में कुछ देर तो लगती है,
आँखों को सुलाने में कुछ देर तो लगती है |
पुरानी बातों को भुला देना इतना आसान नहीं होता,
दिल को समझाने में कुछ देर तो लगती है ||" (अज्ञात)
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"यादों को भुलाने में कुछ देर तो लगती है,
आँखों को सुलाने में कुछ देर तो लगती है |
पुरानी बातों को भुला देना इतना आसान नहीं होता,
दिल को समझाने में कुछ देर तो लगती है ||" (अज्ञात)
भूतकाल को याद कर कर के अपना वर्तमान खराब करने का क्या औचित्य है .....
"मुझे पतझड़ों की कहानियाँ, न सुना सुना के उदास कर |
तू खिज़ाँ का फूल है, मुस्कुरा, जो गुज़र गया सो गुज़र गया ||
वो नही मिला तो मलाल क्या, जो गुज़र गया सो गुज़र गया |
उसे याद करके ना दिल दुखा, जो गुज़र गया सो गुज़र गया ||" (ब.बद्र)
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गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं .....
"उद्धरेदात्मनाऽत्मानं नात्मानमवसादयेत् | आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः||६:५||"
अर्थात हम अपने द्वारा अपना संसार-समुद्र से उद्धार करें, और अपने को अधोगति में न डाले| क्योंकि यह मनुष्य आप ही तो अपना मित्र है और आप ही अपना शत्रु है||"
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दुनियादारी की सब पुरानी बातों को भूल कर अपना हृदय, पूर्ण प्रेम पूर्वक परमात्मा को ही दे देने में सार्थकता और समझदारी है| यह दुनिया परमात्मा की है, हमारी नहीं| उसकी मर्जी, वह इसे चाहे जैसे चलाये| पर उसकी अभिव्यक्ति उसके विश्व में निरंतर हो|
तू खिज़ाँ का फूल है, मुस्कुरा, जो गुज़र गया सो गुज़र गया ||
वो नही मिला तो मलाल क्या, जो गुज़र गया सो गुज़र गया |
उसे याद करके ना दिल दुखा, जो गुज़र गया सो गुज़र गया ||" (ब.बद्र)
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गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं .....
"उद्धरेदात्मनाऽत्मानं नात्मानमवसादयेत् | आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः||६:५||"
अर्थात हम अपने द्वारा अपना संसार-समुद्र से उद्धार करें, और अपने को अधोगति में न डाले| क्योंकि यह मनुष्य आप ही तो अपना मित्र है और आप ही अपना शत्रु है||"
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दुनियादारी की सब पुरानी बातों को भूल कर अपना हृदय, पूर्ण प्रेम पूर्वक परमात्मा को ही दे देने में सार्थकता और समझदारी है| यह दुनिया परमात्मा की है, हमारी नहीं| उसकी मर्जी, वह इसे चाहे जैसे चलाये| पर उसकी अभिव्यक्ति उसके विश्व में निरंतर हो|
ॐ तत्सत ! ॐ नमो भगवाते वासुदेवाय ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१० अगस्त २०१९
कृपा शंकर
१० अगस्त २०१९
भगवान भी बरसात की तरह प्रेम करते हैं,
ReplyDeleteकहीं तो जम कर बरसते हैं,
कहीं एक बूंद के लिए भी तरसाते हैं.