अब मन तृप्त और शांत है ....
मन में जिज्ञासा, प्रश्न और कामनाएँ तभी तक उठती हैं, जब तक मन सीमित व अशांत रहता हो| मन के शांत और विस्तृत हो जाने पर सारी जिज्ञासाएँ, प्रश्न और कामनाएँ भी तिरोहित हो जाती हैं| मैं जुलाई २०११ में फ़ेसबुक और ट्वीटर पर आया था सिर्फ स्वयं को व्यक्त करने की एक गहन कामना की पूर्ति के लिए, जिसका पूरा अवसर फ़ेसबुक ने दिया| आरंभ में मन भरकर राष्ट्रवाद पर खूब लिखा, फिर भक्ति और आध्यात्म पर खूब लिखा| अनेक दिव्य आत्माओं से परिचय और मित्रता हुई, जो जीवन में अन्यथा कभी नहीं हो सकती थी|
अब मन तृप्त और शांत है, कोई कामना नहीं है, अतः लिखने की आवृति (frequency) भी कम हो जाएगी| जितना समय यहाँ लिखने में व्यतीत होता है वह समय परमात्मा के ध्यान और स्वाध्याय में व्यातीत करेंगे| अब जीवन में कोई उद्देश्य नहीं है, कोई कामना नहीं है; जो परमात्मा की इच्छा है वह ही मेरी इच्छा है|
"यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः|
तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम||१८:७८||" (गीता)
"यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः|
तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम||१८:७८||" (गीता)
कहीं जा नहीं रहा| आप सब के मध्य ही रहूँगा, जब भी कुछ लिखने की प्रेरणा मिलेगी तब अवश्य लिखूंगा| परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्तियाँ हैं आप सब| बहुत अधिक कहने से कोई लाभ नहीं है| समस्त योग और उनके बीज सर्व व्याप्त, अनंत, असीम, योगेश्वर भगवान परमशिव से ही उत्पन्न हुए हैं| वे ही आदि और अंत हैं| अवशिष्ट सम्पूर्ण जीवन उन्हीं के ध्यान में उन्हीं के साथ बीते, कहीं कोई भेद न हो, कभी किसी कामना का जन्म न हो|
मंगलमय शुभ कामनाएँ और नमन !
ॐ तत्सत ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
११ अगस्त २०१९
ॐ तत्सत ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
११ अगस्त २०१९
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