ब्रह्म-तत्व का बोध कैसे कर सकते हैं? .....
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ब्रह्म-तत्व सर्वव्यापी है और निरंतर विस्तृत हो रहा है| सारी सृष्टि उसमें समाहित है और वह भी सम्पूर्ण सृष्टि में समाहित है| ब्रह्मतत्व प्रत्यक्ष अनुभूति से समझ में आता है, बुद्धि से नहीं| सहस्त्रार में गुरु प्रदत्त विधि से श्रीगुरुचरणों का ध्यान करते करते गुरुकृपा से चेतना जब ब्रह्मरंध्र को भेद कर अनंत में चली जाती है, और उस दिव्य अनंतता का दीर्घ दिव्य अनुभव कई बार प्राप्त कर के देह में बापस लौटती है, तब ब्रह्मनिष्ठ सिद्ध सद्गुरु की कृपा और आशीर्वाद से वह अनुभूति ही "परमशिव" और "पारब्रह्म" का बोध करा देती है, अन्यथा नहीं| तब ही हम कह सकते हैं ..... "शिवोहम् शिवोहम् अहम् ब्रह्मास्मि", अन्यथा नहीं|
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ब्रह्म-तत्व सर्वव्यापी है और निरंतर विस्तृत हो रहा है| सारी सृष्टि उसमें समाहित है और वह भी सम्पूर्ण सृष्टि में समाहित है| ब्रह्मतत्व प्रत्यक्ष अनुभूति से समझ में आता है, बुद्धि से नहीं| सहस्त्रार में गुरु प्रदत्त विधि से श्रीगुरुचरणों का ध्यान करते करते गुरुकृपा से चेतना जब ब्रह्मरंध्र को भेद कर अनंत में चली जाती है, और उस दिव्य अनंतता का दीर्घ दिव्य अनुभव कई बार प्राप्त कर के देह में बापस लौटती है, तब ब्रह्मनिष्ठ सिद्ध सद्गुरु की कृपा और आशीर्वाद से वह अनुभूति ही "परमशिव" और "पारब्रह्म" का बोध करा देती है, अन्यथा नहीं| तब ही हम कह सकते हैं ..... "शिवोहम् शिवोहम् अहम् ब्रह्मास्मि", अन्यथा नहीं|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१७ अगस्त २०१९
कृपा शंकर
१७ अगस्त २०१९
जिस क्षण भगवान की याद आए और उनके प्रति प्रेम उमड़ पड़े, वह क्षण सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त है. वह क्षण चिरस्थायी व शाश्वत रहे.
ReplyDeleteजब दोनों नासिका छिद्रों से सांस चल रही हो, वह समय भगवान के ध्यान का सर्वश्रेष्ठ समय है. नासिका से साँसों से संबंधित कोई समस्या है तो उसका उपचार करवायें. हठयोग में भी कई उपाय बतलाये गए हैं|
भगवान से परमप्रेम जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है.