Thursday, 5 September 2019

क्या हम अपने मन को पकड़ कर रख सकते हैं? .....

क्या हम अपने मन को पकड़ कर रख सकते हैं? .....

योगी लोग कहते हैं कि प्राण-तत्व पर यदि नियंत्रण हो जाये तो हम मन ही नहीं, पूरे अन्तःकरण (मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार) पर विजय पा सकते हैं| मन यदि चंचल है तो यह मन का दोष नहीं है, क्योंकि चंचलता तो मन का धर्म है| प्राण-तत्व की चंचलता नियंत्रित हो जाये तो मन की चंचलता भी समाप्त हो जाती है| इसके लिए ब्रहमनिष्ठ सिद्ध गुरु के मार्गदर्शन में आंतरिक सूक्ष्म प्राणायाम का अभ्यास किया जाता है जिस से आत्मा प्रकाशित हो उठती है|
वैराग्य और इस अभ्यास के बारे में गीता में भगवान कहते हैं .....
"असंशयं महाबाहो मनो दुर्निग्रहं चलं |
अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते ||६:३५||
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हम सब के भीतर ब्र्हमत्व छिपा है| ब्र्हमत्व ही परम शिवत्व है| स्वयं परम शिव बनकर परम शिव का ध्यान करो| चिदाकाश (चित्त रूपी आकाश) में स्वयं की अनंतता का ध्यान करो| वह अनंतता ही हमारा वास्तविक रूप है|
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हमारे गुरु हम से पृथक नहीं हो सकते, वे हमारे साथ एक हैं| हमारा आत्मतत्व ही हमारा गुरु है| सारी चिंताओं का विसर्जन कर सहस्त्रार में, ब्रह्मरंध्र में, गुरु चरणों का ध्यान करो| वे हमारा सारा अज्ञान धीरे धीरे हर लेंगे, वे हरिः हैं, वे ही मुक्ति के द्वार हैं|
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हरिः ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
३ सितंबर २०१९

1 comment:

  1. कीटक नाम का एक साधारण सा कीड़ा भँवरे से डर कर कमल के फूल में छिप जाता है| भँवरे का ध्यान करते करते वह स्वयं भी भँवरा बन जाता है|
    वैसे ही हम भी निरंतर परमशिव का ध्यान करते करते स्वयं परमशिव बन सकते हैं|
    भगवान के लिये एक बेचैनी, तड़प और घनीभूत प्यास बनाए रखें|

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