गणेश चतुर्थी की शुभ कामनाएँ .....
जहाँ तक मैं समझता हूँ, पंचप्राण (प्राण, अपान, समान, उदान और व्यान), गणेश जी के गण हैं, जिनके गणपति वे ओंकार रूप में हैं|
ॐ गं गणपतये नमः !! ॐ ॐ ॐ !!!
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भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में सम्पूर्ण भारत में गणेश चतुर्थी के पर्व ने बड़ा महत्वपूर्ण योगदान दिया है| एक समय था जब अंग्रेजों ने पूरे भारत में धारा-१४४ लागू कर रखी थी| पाँच से अधिक व्यक्ति एक स्थान पर एकत्र नहीं हो सकते थे| अंग्रेज पुलिस गश्त लगाती रहती और जहाँ कहीं भी पाँच से अधिक व्यक्ति एक साथ एकत्र दिखाई देते उन पर बिना चेतावनी के लाठी-चार्ज कर देती| पूरा भारत आतंकित था|
ॐ गं गणपतये नमः !! ॐ ॐ ॐ !!!
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भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में सम्पूर्ण भारत में गणेश चतुर्थी के पर्व ने बड़ा महत्वपूर्ण योगदान दिया है| एक समय था जब अंग्रेजों ने पूरे भारत में धारा-१४४ लागू कर रखी थी| पाँच से अधिक व्यक्ति एक स्थान पर एकत्र नहीं हो सकते थे| अंग्रेज पुलिस गश्त लगाती रहती और जहाँ कहीं भी पाँच से अधिक व्यक्ति एक साथ एकत्र दिखाई देते उन पर बिना चेतावनी के लाठी-चार्ज कर देती| पूरा भारत आतंकित था|
ऐसे समय में पं. बाल गंगाधर तिलक ने महाराष्ट्र में गणपति-उत्सव का आरंभ किया| सिर्फ धार्मिक आयोजनों के लिए ही एकत्र होने की छूट थी| गणपति पूजा के नाम पर लोग एकत्र होते और धार्मिकता के साथ-साथ उनमें राष्ट्रवादी विचार भी भर जाते| तत्पश्चात महाराष्ट्र के साथ-साथ पूरे भारत में गणपति उत्सव का चलन हो गया|
२ सितंबर २०१९
आज गणेश-गीता के कुछ अंशों का स्वाध्याय करने का अवसर मिला| स्वयं गणेश जी ने राजा वरेण्य को जो उपदेश दिए वे गणेश-गीता कहलाते हैं| राजा वरेण्य मुमुक्षु स्थिति में थे, और अपने धर्म और कर्तव्य को बहुत अच्छी तरह जानते थे| इस ग्रंथ के ११ अध्यायों में ४१४ श्लोक हैं| श्रीमद्भगवद्गीता और गणेशगीता में लगभग सारे विषय समान हैं| जो गणेश जी के भक्त हैं उन्हें इस ग्रंथ का स्वाध्याय अवश्य करना चाहिए|
ReplyDeleteपुनश्च: :----
राजा वरेण्य ने गजानन से प्रार्थना की ..... ‘हे सब शास्त्रों और विद्याओं के ज्ञाता महाबाहु विघ्नेश्वर! आप मेरा अज्ञान दूरकर मुझे मुक्ति के मार्ग का उपदेश कीजिए|’
तब भगवान गजानन ने राजा वरेण्य को योगामृत से भरी ‘श्रीगणेशगीता’ का उपदेश किया। श्रीगणेशगीता को सुनने के बाद राजा वरेण्य विरक्त हो गए और पुत्र को राज्य सौंपकर वन में चले गए| वहां योग का आश्रय लेकर वे मोक्ष को प्राप्त हुए|
"यथा जलं जले क्षिप्तं जलमेव हि जायते| तथा तद्ध्यानत: सोऽपि तन्मयत्वमुपाययौ||"
‘जिस प्रकार जल जल में मिलने पर जल ही हो जाता है, उसी प्रकार ब्रह्मरूपी गणेश का चिन्तन करते हुए राजा वरेण्य भी उस ब्रह्मरूप में समा गये|"