आत्म-प्रशंसा एक बहुत बड़ा अवगुण है| कभी भूल से भी आत्म-प्रशंसा न करें|
हम सब के भीतर एक आध्यात्मिक चुम्बकत्व होता है, जो बिना कुछ कहे ही हमारी महिमा का स्वतः ही बखान कर देता है| ध्यान साधना और भक्ति से उस आध्यात्मिक चुम्बकत्व का विकास करें| वह चुम्बकत्व जिस में भी होगा, अच्छे अच्छे लोग उसकी ओर स्वतः ही खिंचे चले आयेंगे| उसकी बातों को सब लोग बड़े ध्यान से सुनेंगे, कभी भूलेंगे नहीं और उन बातों का चिर स्थायी प्रभाव पड़ेगा| कभी कभी कोई बहुत ही प्रभावशाली वक्ता बहुत सुन्दर भाषण और प्रवचन देता है, श्रोतागण बड़े जोर से प्रसन्न होकर तालियाँ बजाते हैं, पर पाँच-दस मिनट बाद उसको भूल जाते हैं| वहीं कभी कोई एक मामूली सा लगने वाला व्यक्ति कुछ कह देता है जिसे हम वर्षों तक नहीं भूलते| कभी कोई अति आकर्षक व्यक्ति मिलता है, मिलते ही हम उससे दूर हटना चाहते हैं, पर कभी कभी एक सामान्य से व्यक्ति को भी हम छोड़ना नहीं चाहते, यह उस व्यक्ति के चुम्बकत्व का ही प्रभाव है| आध्यात्मिक चुम्बकत्व .... आत्मा की एक शक्ति है जो उस हर वस्तु या परिस्थिति को आकर्षित या निर्मित कर लेती है जो किसी को अपने विकास या सुख-शांति के लिए चाहिए|
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हम जहाँ भी जाते हैं और जिन भी व्यक्तियों से मिलते हैं उन के चुम्बकत्व का आपस में विनिमय होता रहता है, इसीलिए अपने शास्त्रों में कुसंग का सर्वथा त्याग करने को कहा गया है| सत्संग की महिमा भी यही है| जब हम संत महात्माओं के बारे चिंतन मनन करते हैं तब उनका चुम्बकत्व भी हमें प्रभावित करता है| इसीलिए सद्गुरु का और परमात्मा का सदा चिंतन करना चाहिए और मानसिक रूप से सदा उनको अपने साथ रखना चाहिए| किसी की निंदा या बुराई करने से उसके अवगुण हमारे में आते हैं अतः परनिंदा से बचें|
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कूटस्थ में अपने सद्गुरु या परमात्मा की सर्वप्रिय निज धारणा का निरंतर ध्यान करें| इससे आध्यात्मिक चुम्बकत्व का विकास होगा| हम शांत और मौन रहें, अपने चुम्बकत्व को बोलने दें| मुझे निज जीवन मैं ऐसे कुछ महात्माओं का सत्संग लाभ मिला है जिनकी उपस्थिति मात्र से ही मन इतना अधिक शांत हो गया कि विचार ही आने बंद हो गए| बिना शब्दों के विनिमय से ही उनसे इतना ज्ञान लाभ हुआ जिसकी कल्पना भी नहीं कर सकता था|
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परमात्मा की विशेष परम कृपा हम सब पर बनी रहे ! परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्ति आप सब को नमन !
ॐ श्रीगुरुभ्यो नमः ! हरिः ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२८ अगस्त २०१९
हम सब के भीतर एक आध्यात्मिक चुम्बकत्व होता है, जो बिना कुछ कहे ही हमारी महिमा का स्वतः ही बखान कर देता है| ध्यान साधना और भक्ति से उस आध्यात्मिक चुम्बकत्व का विकास करें| वह चुम्बकत्व जिस में भी होगा, अच्छे अच्छे लोग उसकी ओर स्वतः ही खिंचे चले आयेंगे| उसकी बातों को सब लोग बड़े ध्यान से सुनेंगे, कभी भूलेंगे नहीं और उन बातों का चिर स्थायी प्रभाव पड़ेगा| कभी कभी कोई बहुत ही प्रभावशाली वक्ता बहुत सुन्दर भाषण और प्रवचन देता है, श्रोतागण बड़े जोर से प्रसन्न होकर तालियाँ बजाते हैं, पर पाँच-दस मिनट बाद उसको भूल जाते हैं| वहीं कभी कोई एक मामूली सा लगने वाला व्यक्ति कुछ कह देता है जिसे हम वर्षों तक नहीं भूलते| कभी कोई अति आकर्षक व्यक्ति मिलता है, मिलते ही हम उससे दूर हटना चाहते हैं, पर कभी कभी एक सामान्य से व्यक्ति को भी हम छोड़ना नहीं चाहते, यह उस व्यक्ति के चुम्बकत्व का ही प्रभाव है| आध्यात्मिक चुम्बकत्व .... आत्मा की एक शक्ति है जो उस हर वस्तु या परिस्थिति को आकर्षित या निर्मित कर लेती है जो किसी को अपने विकास या सुख-शांति के लिए चाहिए|
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हम जहाँ भी जाते हैं और जिन भी व्यक्तियों से मिलते हैं उन के चुम्बकत्व का आपस में विनिमय होता रहता है, इसीलिए अपने शास्त्रों में कुसंग का सर्वथा त्याग करने को कहा गया है| सत्संग की महिमा भी यही है| जब हम संत महात्माओं के बारे चिंतन मनन करते हैं तब उनका चुम्बकत्व भी हमें प्रभावित करता है| इसीलिए सद्गुरु का और परमात्मा का सदा चिंतन करना चाहिए और मानसिक रूप से सदा उनको अपने साथ रखना चाहिए| किसी की निंदा या बुराई करने से उसके अवगुण हमारे में आते हैं अतः परनिंदा से बचें|
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कूटस्थ में अपने सद्गुरु या परमात्मा की सर्वप्रिय निज धारणा का निरंतर ध्यान करें| इससे आध्यात्मिक चुम्बकत्व का विकास होगा| हम शांत और मौन रहें, अपने चुम्बकत्व को बोलने दें| मुझे निज जीवन मैं ऐसे कुछ महात्माओं का सत्संग लाभ मिला है जिनकी उपस्थिति मात्र से ही मन इतना अधिक शांत हो गया कि विचार ही आने बंद हो गए| बिना शब्दों के विनिमय से ही उनसे इतना ज्ञान लाभ हुआ जिसकी कल्पना भी नहीं कर सकता था|
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परमात्मा की विशेष परम कृपा हम सब पर बनी रहे ! परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्ति आप सब को नमन !
ॐ श्रीगुरुभ्यो नमः ! हरिः ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२८ अगस्त २०१९
योग मार्ग की साधनाओं में पहले सिर्फ ज्ञानयोग, भक्तियोग, व कर्मयोग आदि ही सुनने को आते थे| आजकल ज्ञानयोग में ही अनेक नाम सुनने को आते हैं, जैसे ..... शिवयोग, हंसयोग, विहंगम योग, क्रियायोग आदि| इन सब के बारे में उपलब्ध साहित्य का स्वाध्याय करने के पश्चात पता चला कि ये सारी साधनायें वैदिक ही हैं, इनमें कोई विशेष अंतर नहीं है| आचार्यों ने इनके विभिन्न नाम रख दिए हैं|
ReplyDeleteइन सब की जटिलताओं में जाने की अपेक्षा परमात्मा के अनुग्रह से अपने निज-स्वभाव के अनुकूल जो भी साधना मिल जाए वह करते रहें| कोई साधना छोटी-बड़ी नहीं है| मापदंड एक ही है ..... परमात्मा के प्रेम और आनंद की अनुभूति हो रही है या नहीं| यदि परमात्मा की अनुभूति हो रही है तो हम सही मार्ग पर अग्रसर हैं, अन्यथा नहीं|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
३० अगस्त २०१९