कई मित्र मुझसे बार बार कहते थे कि वेदों की ओर बापस लौटो, बापस लौटो| मैंने पूछा कि कैसे लौटें? लौटने की विधि तो बताओ क्योंकि वेदों को समझना हमारी बौद्धिक क्षमता से परे है| इसका कोई उत्तर उनके पास नहीं था, एक-दो रटे-रटाये श्लोक ही उनको याद थे, कोई ज्ञान नहीं था उनके पास|
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जहाँ तक मैं समझता हूँ, शब्दों के अर्थ मात्र को जानने से वेदों का ज्ञान नहीं हो सकता| अनुवाद को पढ़ने मात्र से वेदों को नहीं समझ सकते| उसके लिए श्रद्धा और साधना द्वारा अंतर्प्रज्ञा जागृत करनी पड़ती है, फिर सही उच्चारण की विधि, वैदिक व्याकरण, छंद, निरुक्त, ज्योतिष व कल्प सूत्रों का ज्ञान भी आवश्यक है| बिना परमात्मा की कृपा और आशीर्वाद के वेदों को समझना असंभव है|
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अब वर्तमान में तो जैसा भी मार्गदर्शन परमात्मा से प्राप्त हो रहा है, उसी का अनुशरण करेंगे| अभी तो जीवन का उद्देश्य कुछ पाना या जानना नहीं है, बल्कि परमात्मा को पूर्ण समर्पण है| ज्ञान का एकमात्र स्त्रोत परमात्मा है, पुस्तकें नहीं| जैसी भी और जो भी इच्छा परमात्मा की होगी, उसका ज्ञान वे स्वयं ही करा देंगे, उसकी कोई चिंता नहीं है| गुरुकृपा से परमात्मा की अनुभूतियाँ और आंतरिक स्पष्ट मार्गदर्शन प्राप्त हो रहा है, अतः पूर्ण संतुष्टि है, किसी तरह का कोई अभाव नहीं है|
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जहाँ तक मैं समझता हूँ, शब्दों के अर्थ मात्र को जानने से वेदों का ज्ञान नहीं हो सकता| अनुवाद को पढ़ने मात्र से वेदों को नहीं समझ सकते| उसके लिए श्रद्धा और साधना द्वारा अंतर्प्रज्ञा जागृत करनी पड़ती है, फिर सही उच्चारण की विधि, वैदिक व्याकरण, छंद, निरुक्त, ज्योतिष व कल्प सूत्रों का ज्ञान भी आवश्यक है| बिना परमात्मा की कृपा और आशीर्वाद के वेदों को समझना असंभव है|
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अब वर्तमान में तो जैसा भी मार्गदर्शन परमात्मा से प्राप्त हो रहा है, उसी का अनुशरण करेंगे| अभी तो जीवन का उद्देश्य कुछ पाना या जानना नहीं है, बल्कि परमात्मा को पूर्ण समर्पण है| ज्ञान का एकमात्र स्त्रोत परमात्मा है, पुस्तकें नहीं| जैसी भी और जो भी इच्छा परमात्मा की होगी, उसका ज्ञान वे स्वयं ही करा देंगे, उसकी कोई चिंता नहीं है| गुरुकृपा से परमात्मा की अनुभूतियाँ और आंतरिक स्पष्ट मार्गदर्शन प्राप्त हो रहा है, अतः पूर्ण संतुष्टि है, किसी तरह का कोई अभाव नहीं है|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
३ सितंबर २०१९
३ सितंबर २०१९
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