Thursday, 5 September 2019

योगक्षेमं वहाम्यहम् .....

योगक्षेमं वहाम्यहम् .....
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सारी समस्याएँ परमात्मा की हैं, हमारी नहीं| निमित्त मात्र एक उपकरण बनकर स्वयं के माध्यम से परमात्मा को प्रवाहित होने दीजिये| कर्ता वे हैं, हम नहीं| हमारी प्रथम, अंतिम और एकमात्र समस्या परमात्मा को उपलब्ध होना है| गीता में भगवान कहते हैं .....
"अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते| तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्||९:२२||"
अर्थात् अनन्य भाव से मेरा चिन्तन करते हुए जो भक्तजन मेरी ही उपासना करते हैं, उन नित्ययुक्त पुरुषों का योगक्षेम मैं वहन करता हूँ||
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आंतरिक दृष्टिपथ भ्रूमध्य में रहे, चेतना उत्तरा-सुषुम्ना व सहस्त्रार में, जहाँ उनका स्मरण निरंतर सदा बना रहे| नदी का विलय जब महासागर में हो जाता है तब नदी का कोई नाम-रूप नहीं रहता, सिर्फ महासागर ही महासागर रहता है, वैसे ही जीवात्मा जब परमात्मा में समर्पित हो जाती है, तब जीवात्मा का कोई पृथक अस्तित्व नहीं रहता, सिर्फ परमात्मा ही परमात्मा रहते हैं|
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मनुष्य देह सर्वश्रेष्ठ साधन है परमात्मा को पाने का| मृत्यु देवता हमें इस देह से पृथक करें, उस से पूर्व ही निश्चयपूर्वक पूरा यत्न कर के हमें परमात्मा को समर्पित हो जाना चाहिए |समय और सामर्थ्य व्यर्थ नष्ट न करें |
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कृपा शंकर
झुञ्झुणु (राजस्थान)
२१ अगस्त २०१९

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सारी समस्याएँ परमात्मा की हैं, हमारी नहीं| निमित्त मात्र एक उपकरण बनकर स्वयं के माध्यम से परमात्मा को प्रवाहित होने दीजिये| कर्ता वे हैं, हम नहीं| हमारी प्रथम, अंतिम और एकमात्र समस्या परमात्मा को उपलब्ध होना है| गीता में भगवान कहते हैं .....
"अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते| तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्||९:२२||"
अर्थात् अनन्य भाव से मेरा चिन्तन करते हुए जो भक्तजन मेरी ही उपासना करते हैं, उन नित्ययुक्त पुरुषों का योगक्षेम मैं वहन करता हूँ||
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आंतरिक दृष्टिपथ भ्रूमध्य में रहे, चेतना उत्तरा-सुषुम्ना व सहस्त्रार में, जहाँ उनका स्मरण निरंतर सदा बना रहे| नदी का विलय जब महासागर में हो जाता है तब नदी का कोई नाम-रूप नहीं रहता, सिर्फ महासागर ही महासागर रहता है, वैसे ही जीवात्मा जब परमात्मा में समर्पित हो जाती है, तब जीवात्मा का कोई पृथक अस्तित्व नहीं रहता, सिर्फ परमात्मा ही परमात्मा रहते हैं|
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मनुष्य देह सर्वश्रेष्ठ साधन है परमात्मा को पाने का| मृत्यु देवता हमें इस देह से पृथक करें, उस से पूर्व ही निश्चयपूर्वक पूरा यत्न कर के हमें परमात्मा को समर्पित हो जाना चाहिए |समय और सामर्थ्य व्यर्थ नष्ट न करें |
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कृपा शंकर
झुञ्झुणु (राजस्थान)
२१ अगस्त २०१९

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