मनुष्य की दो साँसों, व दो विचारों के मध्य का समय परमात्मा को सर्वाधिक प्रिय है| इन अवधियों का अधिकाधिक समय पूर्ण भक्ति से परमात्मा के ध्यान में व्यतीत करने से सारे योगों का साधकों को ज्ञान भी हो जाता है, उनकी साधना भी हो जाती है, और वे सिद्ध भी हो जाते हैं| ऐसा हमने सिद्ध संत-महात्माओं से सुना है|
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सर्वव्यापी-सर्वमय अनादि-अनंत परमशिव गुरु महाराज को नमन जिनके स्मरण मात्र से जीवन में वेदान्त स्वयमेव प्रस्फुटित हो जाता है, कहीं कोई भेद नहीं रहता| उनकी परमकृपा से अज्ञानरूपी आवरण दूर होकर उनकी विराट ज्योतिर्मय अनंत आभा का कूटस्थ में आभास होता है| उनकी इच्छा से ही इस शरीर रूपी दुपहिया वाहन की सांसें चल रही हैं, और चेतना इस संसार से जुड़ी हुई है| उनकी कृपा सभी प्राणियों पर निरंतर सदा बनी रहे|
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सर्वव्यापी-सर्वमय अनादि-अनंत परमशिव गुरु महाराज को नमन जिनके स्मरण मात्र से जीवन में वेदान्त स्वयमेव प्रस्फुटित हो जाता है, कहीं कोई भेद नहीं रहता| उनकी परमकृपा से अज्ञानरूपी आवरण दूर होकर उनकी विराट ज्योतिर्मय अनंत आभा का कूटस्थ में आभास होता है| उनकी इच्छा से ही इस शरीर रूपी दुपहिया वाहन की सांसें चल रही हैं, और चेतना इस संसार से जुड़ी हुई है| उनकी कृपा सभी प्राणियों पर निरंतर सदा बनी रहे|
ॐ तत्सत् ! ॐ नमो भगवाते वासुदेवाय ! ॐ नमः शिवाय ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१४ अगस्त २०१९
कृपा शंकर
१४ अगस्त २०१९
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