Saturday, 7 December 2019

समत्व की प्राप्ति कैसे हो? ....

समत्व की प्राप्ति कैसे हो?
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कई जन्मों की दीर्घकालीन साधनाओं का फल है समत्व| यह कोई आरंभिक लक्षण नहीं है| समता कभी स्वयं के प्रयास से नहीं आती, यह तो परमात्मा का विशेष अनुग्रह है| इच्छाओं का नाश होना भी परमात्मा का विशेष अनुग्रह है|
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गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं .....
"योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय| सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते||२:४८||"
अर्थात हे धनंजय, आसक्ति को त्याग कर तथा सिद्धि और असिद्धि में समभाव होकर योग में स्थित हुये तुम कर्म करो| यह समभाव ही योग कहलाता है||
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फल तृष्णा रहित कर्म किये जाने पर अन्तःकरण की शुद्धि से उत्पन्न होनेवाली ज्ञान प्राप्ति तो सिद्धि है, और उससे विपरीत (ज्ञान प्राप्ति का न होना) असिद्धि है| ऐसी सिद्धि और असिद्धि में सम हो कर अर्थात् दोनों को तुल्य समझ कर कर्म करने हैं| ईश्वर मुझ पर प्रसन्न हों, इस आशा रूप आसक्ति को भी छोड़ना पड़ेगा| यही जो सिद्धि और असिद्धि में समत्व है इसीको योग कहते हैं| समता में निरंतर सम रहना योगस्थ होना है|
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भगवान वासुदेव की हम सभी पर परम कृपा हो|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
७ नवंबर २०१९

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