तारक मंत्र "राम" से अधिक सुंदर अन्य कोई दूसरा मंत्र नहीं है|
"र" अग्नि का बीजमंत्र है, जो कर्म बंधनों का दाहक है|
"अ" सूर्य का बीजमंत्र है, जो ज्ञान का प्रकाशक है|
"म" चंद्रमा का बीजमंत्र है जो मन को शांत करता है|.
राम नाम एक अटल सत्य है जो निरंतर हमारी रक्षा करता है| मृत्यु के बाद भी इसका प्रभाव नष्ट नहीं होता| अनंत की यात्रा में यह सब से अधिक विश्वसनीय साथी है| इसके जाप से हमारे चारों ओर एक रक्षा कवच का निर्माण होता है| राम ही हमारे जीवन की परिपूर्णता और ऊर्जा है जो रोम रोम में बसी है| इस मंत्र में कोई देश-काल, शौच-अशौच व किसी भी तरह का कोई बंधन नहीं है| राम राम !!!
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जब प्राण की गति होती है, जैसे शरीर से बाहर निकला, तो वह "ॐ" से "रं" हो जाता है ..... प्राणो वै रं, प्राणे हि इमानि सर्वाणि भूतानि रमन्ते (बृहदारण्यक उपनिषद्, ५/१२/१)| किसी व्यक्ति को निर्देश (तत् = वह) करने के लिये उसका नाम कहते हैं| अतः ॐ तत् सत् का ’राम नाम सत्'’ भी हो जाता है|
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एक समय सनकादि योगीश्वरों, ऋषियों और प्रह्लाद आदि महाभागवतों ने श्रीहनुमानजी से पूछा ..... हे महाबाहु वायुपुत्र हनुमानजी ! आप यह बतलानेकी कृपा करें कि वेदादि शास्त्रों, पुराणों तथा स्मृतियों आदि में ब्रह्मवादियों के लिये कौन सा तत्त्व उपदिष्ट हुआ है, विष्णुके समस्त नामों में से तथा गणेश, सूर्य, शिव और शक्ति .... इनमें से वह तत्त्व कौन-सा है ?
इस पर हनुमानजी बोले – हे मुनीश्वरो ! आप संसारके बन्धन का नाश करने वाली मेरी बातें सुनें | इन सब वेदादि शास्त्रोंमें परम तत्त्व ब्रह्मस्वरूप तारक ही है । राम ही परम ब्रह्म हैं | राम ही परम तपःस्वरूप हैं | राम ही परमतत्त्व हैं | वे राम ही तारक ब्रह्म हैं --
भो योगीन्द्राश्चैव ऋषयो विष्णुभक्तास्तथैव च ।
शृणुध्वं मामकीं वाचं भवबन्धविनाशिनीम् ।।
एतेषु चैव सर्वेषु तत्त्वं च ब्रह्मतारकम् ।
राम एव परं ब्रह्म राम एव परं तपः ।।
राम एव परं तत्त्वं श्रीरामो ब्रह्म तारकम् ।।
(रामरहस्योपनिषद्)
(‘कल्याण’ पत्रिका; वर्ष – ८८, संख्या – ४ : गीताप्रेस, गोरखपुर)
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पुनश्च :----
राम नाम की महिमा ----- (संशोधित व पुनर्प्रेषित लेख)
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एक समय सनकादि योगीश्वरों, ऋषियों और प्रह्लाद आदि महाभागवतों ने श्रीहनुमानजी से पूछा ..... हे महाबाहु वायुपुत्र हनुमानजी ! आप यह बतलानेकी कृपा करें कि वेदादि शास्त्रों, पुराणों तथा स्मृतियों आदि में ब्रह्मवादियों के लिये कौन सा तत्त्व उपदिष्ट हुआ है, विष्णुके समस्त नामों में से तथा गणेश, सूर्य, शिव और शक्ति .... इनमें से वह तत्त्व कौन-सा है ?
इस पर हनुमानजी बोले – हे मुनीश्वरो ! आप संसारके बन्धन का नाश करने वाली मेरी बातें सुनें | इन सब वेदादि शास्त्रोंमें परम तत्त्व ब्रह्मस्वरूप तारक ही है | राम ही परम ब्रह्म हैं | राम ही परम तपःस्वरूप हैं | राम ही परमतत्त्व हैं | वे राम ही तारक ब्रह्म हैं --
भो योगीन्द्राश्चैव ऋषयो विष्णुभक्तास्तथैव च |
शृणुध्वं मामकीं वाचं भवबन्धविनाशिनीम् ||
"र" अग्नि का बीजमंत्र है, जो कर्म बंधनों का दाहक है|
"अ" सूर्य का बीजमंत्र है, जो ज्ञान का प्रकाशक है|
"म" चंद्रमा का बीजमंत्र है जो मन को शांत करता है|.
राम नाम एक अटल सत्य है जो निरंतर हमारी रक्षा करता है| मृत्यु के बाद भी इसका प्रभाव नष्ट नहीं होता| अनंत की यात्रा में यह सब से अधिक विश्वसनीय साथी है| इसके जाप से हमारे चारों ओर एक रक्षा कवच का निर्माण होता है| राम ही हमारे जीवन की परिपूर्णता और ऊर्जा है जो रोम रोम में बसी है| इस मंत्र में कोई देश-काल, शौच-अशौच व किसी भी तरह का कोई बंधन नहीं है| राम राम !!!
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जब प्राण की गति होती है, जैसे शरीर से बाहर निकला, तो वह "ॐ" से "रं" हो जाता है ..... प्राणो वै रं, प्राणे हि इमानि सर्वाणि भूतानि रमन्ते (बृहदारण्यक उपनिषद्, ५/१२/१)| किसी व्यक्ति को निर्देश (तत् = वह) करने के लिये उसका नाम कहते हैं| अतः ॐ तत् सत् का ’राम नाम सत्'’ भी हो जाता है|
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एक समय सनकादि योगीश्वरों, ऋषियों और प्रह्लाद आदि महाभागवतों ने श्रीहनुमानजी से पूछा ..... हे महाबाहु वायुपुत्र हनुमानजी ! आप यह बतलानेकी कृपा करें कि वेदादि शास्त्रों, पुराणों तथा स्मृतियों आदि में ब्रह्मवादियों के लिये कौन सा तत्त्व उपदिष्ट हुआ है, विष्णुके समस्त नामों में से तथा गणेश, सूर्य, शिव और शक्ति .... इनमें से वह तत्त्व कौन-सा है ?
इस पर हनुमानजी बोले – हे मुनीश्वरो ! आप संसारके बन्धन का नाश करने वाली मेरी बातें सुनें | इन सब वेदादि शास्त्रोंमें परम तत्त्व ब्रह्मस्वरूप तारक ही है । राम ही परम ब्रह्म हैं | राम ही परम तपःस्वरूप हैं | राम ही परमतत्त्व हैं | वे राम ही तारक ब्रह्म हैं --
भो योगीन्द्राश्चैव ऋषयो विष्णुभक्तास्तथैव च ।
शृणुध्वं मामकीं वाचं भवबन्धविनाशिनीम् ।।
एतेषु चैव सर्वेषु तत्त्वं च ब्रह्मतारकम् ।
राम एव परं ब्रह्म राम एव परं तपः ।।
राम एव परं तत्त्वं श्रीरामो ब्रह्म तारकम् ।।
(रामरहस्योपनिषद्)
(‘कल्याण’ पत्रिका; वर्ष – ८८, संख्या – ४ : गीताप्रेस, गोरखपुर)
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पुनश्च :----
राम नाम की महिमा ----- (संशोधित व पुनर्प्रेषित लेख)
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एक समय सनकादि योगीश्वरों, ऋषियों और प्रह्लाद आदि महाभागवतों ने श्रीहनुमानजी से पूछा ..... हे महाबाहु वायुपुत्र हनुमानजी ! आप यह बतलानेकी कृपा करें कि वेदादि शास्त्रों, पुराणों तथा स्मृतियों आदि में ब्रह्मवादियों के लिये कौन सा तत्त्व उपदिष्ट हुआ है, विष्णुके समस्त नामों में से तथा गणेश, सूर्य, शिव और शक्ति .... इनमें से वह तत्त्व कौन-सा है ?
इस पर हनुमानजी बोले – हे मुनीश्वरो ! आप संसारके बन्धन का नाश करने वाली मेरी बातें सुनें | इन सब वेदादि शास्त्रोंमें परम तत्त्व ब्रह्मस्वरूप तारक ही है | राम ही परम ब्रह्म हैं | राम ही परम तपःस्वरूप हैं | राम ही परमतत्त्व हैं | वे राम ही तारक ब्रह्म हैं --
भो योगीन्द्राश्चैव ऋषयो विष्णुभक्तास्तथैव च |
शृणुध्वं मामकीं वाचं भवबन्धविनाशिनीम् ||
एतेषु चैव सर्वेषु तत्त्वं च ब्रह्मतारकम् |
राम एव परं ब्रह्म राम एव परं तपः ||
राम एव परं तत्त्वं श्रीरामो ब्रह्म तारकम्
(रामरहस्योपनिषद्) (‘कल्याण’ पत्रिका; वर्ष – ८८, संख्या – ४ : गीताप्रेस, गोरखपुर).
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जब प्राण की गति होती है, जैसे शरीर से बाहर निकला, तो वह "ॐ" से "रं" हो जाता है ..... प्राणो वै रं, प्राणे हि इमानि सर्वाणि भूतानि रमन्ते (बृहदारण्यक उपनिषद्, ५/१२/१)| किसी व्यक्ति को निर्देश (तत् = वह) करने के लिये उसका नाम कहते हैं| अतः परमात्मा का वाचक "ॐ" ही राम हो जाता है|
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तारक मंत्र "राम" से अधिक सुंदर अन्य कोई दूसरा मंत्र नहीं है|
"र" अग्नि का बीजमंत्र है, जो कर्म बंधनों का दाहक है|
"अ" सूर्य का बीजमंत्र है, जो ज्ञान का प्रकाशक है|
"म" चंद्रमा का बीजमंत्र है जो मन को शांत करता है|.
राम नाम एक अटल सत्य है जो निरंतर हमारी रक्षा करता है| मृत्यु के बाद भी इसका प्रभाव नष्ट नहीं होता| अनंत की यात्रा में यह सब से अधिक विश्वसनीय साथी है| इसके जाप से हमारे चारों ओर एक रक्षा कवच का निर्माण होता है| राम ही हमारे जीवन की परिपूर्णता और ऊर्जा है जो रोम रोम में बसी है| इस मंत्र में कोई देश-काल, शौच-अशौच व किसी भी तरह का कोई बंधन नहीं है|
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राम राम !!! ॐ तत्सत ! ॐ ॐ ॐ ||
१० नवंबर २०१९
राम एव परं ब्रह्म राम एव परं तपः ||
राम एव परं तत्त्वं श्रीरामो ब्रह्म तारकम्
(रामरहस्योपनिषद्) (‘कल्याण’ पत्रिका; वर्ष – ८८, संख्या – ४ : गीताप्रेस, गोरखपुर).
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जब प्राण की गति होती है, जैसे शरीर से बाहर निकला, तो वह "ॐ" से "रं" हो जाता है ..... प्राणो वै रं, प्राणे हि इमानि सर्वाणि भूतानि रमन्ते (बृहदारण्यक उपनिषद्, ५/१२/१)| किसी व्यक्ति को निर्देश (तत् = वह) करने के लिये उसका नाम कहते हैं| अतः परमात्मा का वाचक "ॐ" ही राम हो जाता है|
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तारक मंत्र "राम" से अधिक सुंदर अन्य कोई दूसरा मंत्र नहीं है|
"र" अग्नि का बीजमंत्र है, जो कर्म बंधनों का दाहक है|
"अ" सूर्य का बीजमंत्र है, जो ज्ञान का प्रकाशक है|
"म" चंद्रमा का बीजमंत्र है जो मन को शांत करता है|.
राम नाम एक अटल सत्य है जो निरंतर हमारी रक्षा करता है| मृत्यु के बाद भी इसका प्रभाव नष्ट नहीं होता| अनंत की यात्रा में यह सब से अधिक विश्वसनीय साथी है| इसके जाप से हमारे चारों ओर एक रक्षा कवच का निर्माण होता है| राम ही हमारे जीवन की परिपूर्णता और ऊर्जा है जो रोम रोम में बसी है| इस मंत्र में कोई देश-काल, शौच-अशौच व किसी भी तरह का कोई बंधन नहीं है|
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राम राम !!! ॐ तत्सत ! ॐ ॐ ॐ ||
१० नवंबर २०१९
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