वर्तमान भारत की सबसे बड़ी समस्या चरित्रहीनता यानि भ्रष्टाचार की है|
दुर्भाग्य से आज वस्तुस्थिति यह है कि किसी भी कार्यालय में बिना घूस दिए
कुछ भी काम नहीं होता| हर कदम पर घूस देनी पड़ती है| झूठ, कपट और कुटिलता
बहुत अधिक बढ़ गई हैं, और बढ़ती ही जा रही हैं| आजादी के बाद तो यह
भ्रष्टाचार रक्तबीज और सुरसा के मुँह की तरह बढ़ा है, और दिन प्रतिदिन बढ़ता
ही जा रहा है| अब तो निजी संस्थानों में भी भ्रष्टाचार बढ़ रहा है| खुद के
लाभ के लिए दूसरों को ठगने की प्रवृति निजी संस्थानों में भी बहुत अधिक
बढ़ गई है| कई बार तो मुझे लगता है कि यह पूरी सृष्टि नष्ट होकर दुबारा बसे
तभी भ्रष्टाचार नहीं होगा| वैसे भी यह (अ)सभ्यता विनाश की ओर जा रही है|
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भारत में भ्रष्टाचार का आरंभ ब्रिटिश शासन में आरंभ हुआ| अंग्रेजों ने अपनी नौकरशाही और पुलिस को एक सुव्यवस्थित रूप से भ्रष्ट बनाया ताकि भारत भ्रष्ट हो| अंग्रेज खुद भी मूलतः समुद्री डाकू और बेईमान कौम थे जिन्होनें अपनी ईमानदारी के झूठे किस्से प्रचारित करवाए|
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आचार्य चतुरसेन शास्त्री ने एक उपन्यास "सोना और खून" लिखा था जिसमें उन्होनें वर्णन किया है कि ब्रिटिश भारत में धीरे धीरे भ्रष्टाचार कैसे व्यवस्थित योजनाबद्ध तरीके से अंग्रेजी शासन द्वारा आरंभ किया गया| मध्य भारत में ठगी का आरंभ उस समय की तत्कालीन परिस्थितियों के कारण हुआ जब अंग्रेजी राज्य भारत में कायम हुआ ही था| बाद में ठगी का अंत भी अंग्रेजों ने ही किया क्योंकि यह ठगी अंग्रेजी शासन के हित में नहीं थी| अंग्रेजों से पूर्व भी भारत में आए सारे विदेशी आक्रांता ठग और बेईमान थे|
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भारत में भ्रष्टाचार और बेईमानी कैसे समाप्त हो यह एक यक्ष-प्रश्न है| लोकतंत्र में कठोर कानून बनाए भी नहीं जा सकते| हिंदुओं में धर्मशिक्षा का अभाव और धर्मनिरपेक्षता भी भ्रष्टाचार के कारण हैं|
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भारत में भ्रष्टाचार का आरंभ ब्रिटिश शासन में आरंभ हुआ| अंग्रेजों ने अपनी नौकरशाही और पुलिस को एक सुव्यवस्थित रूप से भ्रष्ट बनाया ताकि भारत भ्रष्ट हो| अंग्रेज खुद भी मूलतः समुद्री डाकू और बेईमान कौम थे जिन्होनें अपनी ईमानदारी के झूठे किस्से प्रचारित करवाए|
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आचार्य चतुरसेन शास्त्री ने एक उपन्यास "सोना और खून" लिखा था जिसमें उन्होनें वर्णन किया है कि ब्रिटिश भारत में धीरे धीरे भ्रष्टाचार कैसे व्यवस्थित योजनाबद्ध तरीके से अंग्रेजी शासन द्वारा आरंभ किया गया| मध्य भारत में ठगी का आरंभ उस समय की तत्कालीन परिस्थितियों के कारण हुआ जब अंग्रेजी राज्य भारत में कायम हुआ ही था| बाद में ठगी का अंत भी अंग्रेजों ने ही किया क्योंकि यह ठगी अंग्रेजी शासन के हित में नहीं थी| अंग्रेजों से पूर्व भी भारत में आए सारे विदेशी आक्रांता ठग और बेईमान थे|
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भारत में भ्रष्टाचार और बेईमानी कैसे समाप्त हो यह एक यक्ष-प्रश्न है| लोकतंत्र में कठोर कानून बनाए भी नहीं जा सकते| हिंदुओं में धर्मशिक्षा का अभाव और धर्मनिरपेक्षता भी भ्रष्टाचार के कारण हैं|
भारत की सबसे बड़ी समस्या और असली युद्ध अधर्म से है,
ReplyDeleteजिसे हम ठगी, भ्रष्टाचार, घूसखोरी और बेईमानी कहते हैं.
अन्य समस्यायें गौण हैं|
वास्तव में हमारा जीवन धर्म और अधर्म के बीच का एक युद्ध है जो सनातन काल से ही चला या रहा है| इस युद्ध में पिछले कई सौ वर्षों से धर्म पर अधर्म हावी हो रहा है| अब तो धर्म हार गया है और अधर्म जीत गया है| भारतवर्ष में जो कदम कदम पर घूसखोरी, बेईमानी, मिलावट, ठगी, झूठ, कपट, कुटिलता, परस्त्री/पुरुष व पराए धन की कामना ..... आदि दिखाई दे रही है, यह सत्य पर असत्य की विजय है|
ReplyDeleteचाहे यह अस्थायी हो, पर असत्य (अधर्म) जीत गया है और सत्य (धर्म) हार गया है| आजकल लोग भगवान से प्रार्थना भी अपने झूठ, कपट और बेईमानी में सफलता सिद्धि यानि अधर्म/असत्य की सफलता के लिए ही करते हैं| लोग बातें बड़ी बड़ी धर्म की करते हैं पर उन सब के जीवन में अधर्माचरण एक व्यावहारिकता और शिष्टाचार हो गया है| क्या यह महाविनाश का आमंत्रण नहीं है? बड़े दुःख से कहना पड़ रहा है कि धर्म (सत्य) हार गया है और अधर्म (असत्य) जीत गया है| भगवान हमारी रक्षा करो| ॐ ॐ ॐ !!
कहते हैं ..... यतो धर्मः ततो जयः
ReplyDelete(यतो धर्मस्ततो जयः).
पर जब धर्म ही नहीं रहा है तो जय किस की होगी?
हे भगवान, हमारी रक्षा करो|
ReplyDeleteबड़ी विषमता है|
आप ही हमारी रक्षा कर सकते हैं|
हमें कोई उपदेश और ज्ञान नहीं, आपकी प्रत्यक्ष उपस्थिति चाहिए |
ॐ ॐ ॐ !!