Saturday, 7 December 2019

जो कुछ भी है वह उस श्रीहरिः का ही है ...

जीवन में अंततः किसी ने मुझे अपने पूरे प्रेम की अनुभूति तो कराई| मैं धन्य हुआ| कोई तो मुझे पूरी तरह प्रेम कर रहा है| उस प्रेमी को ही मैं अपना सब कुछ अर्पित कर रहा हूँ|
मेरा वह ईर्ष्यालु प्रेमी "चोर जार शिखामणि", चोरों का सरदार है| बाकी चोर तो धन की चोरी करते हैं पर यह चोरों का सरदार तो चोरी की, पाप की कामना को ही चुपचाप चुरा लेता है, किसी को पता भी नहीं चलता| यह चोर "दुःख-तस्कर" भी है जो सारे दुःखों की कब में से चोरी कर लेता है, कुछ पता नहीं चलता| यह सारे अंतःकरण (मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार) का और सब कुछ का हरण लेता है, अतः हरिः है| उस श्रीहरिः को नमन व सर्वस्य समर्पण| मेरा अपना कुछ नहीं है, जो कुछ भी है वह उस श्रीहरिः का ही है|
हरिः ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
३० अक्टूबर २०१९
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हरि तुम हरो जन की पीर ।
द्रोपदी की लाज राखी तुम बढायो चीर ॥
भक्त कारन रूप नरहरि धरयो आप शरीर ।
हिरन्यकश्यप मार लीन्हो धरयो नाहि न धीर ॥
बूढत गजराज राखयो कियो बाहर नीर ।
दासी मीरा लाल गिरधर दुख जहाँ तहाँ पीर ॥
हरि तुम हरो जन की पीर || (मीरा बाई)

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