Saturday, 7 December 2019

कोई जलते हुए कोयलों से भरी हुई एक परात मेरे सिर पर रख दे .....

हे श्रीहरिः, यदि कोई जलते हुए कोयलों से भरी हुई एक परात मेरे सिर पर रख दे, या मुझे जीवित ही एक प्रज्ज्वलित विशाल अग्निकुंड में फेंक दे, तो उस दाहकता से मुक्त होने की छटपटाहट और पीड़ा जितनी गहन और जैसी भी हो, उस से द्वीगुणित पीड़ा, छटपटाहट और अभीप्सा मेरे हृदय में निरंतर तुम्हें पाने की हो| तुम्हारे बिना अब और जी नहीं सकते| इसी क्षण स्वयं को प्रकट करो|
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तुम्हारा एक नाम 'सत्कृति' भी है, जिसका अर्थ है जो अपने भक्त के शरीर त्यागने के समय में उसकी सहायता करे| तुम्हारा दिया हुआ वचन है ...
"वातादि दोषेण मद्भक्तों मां न च स्मरेत्| अहं स्मरामि मद्भक्तं नयामि परमां गतिम्||"
अर्थात यदि वातादि दोष के कारण मृत्यु के समय मेरा भक्त मेरा स्मरण नहीं कर पाता है तो मैं उसका स्मरण कर उसे परम गति प्राप्त करवाता हूँ|
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मैनें अपने पूर्व जन्मों में स्वयं के अवचेतन मन में भरी हुईं वासनाओं और कामनाओं से मुक्ति के कोई उपाय नहीं किए, इसी लिए यह जन्म लेना पड़ा| इसमें किसी अन्य का कोई दोष नहीं है| जीवन में जो भी दुःख-सुख, कष्ट और पीड़ाएँ भुगतीं वे भी मेरे स्वयं के ही कर्मों का फल थीं| कभी भूल से कोई पुण्य किया होगा जिसके परिणामस्वरूप तुम्हारी भक्ति मिली| अब निश्चय कर संकल्प सहित अपने आप को तुम्हारे हाथों में सौंप रहा हूँ| जहाँ से मैं विफल रहा हूँ, वहाँ से तुम मेरा हाथ थाम लो| और कुछ भी नहीं चाहिए| किसी भी कामना या अपेक्षा का जन्म ही न हो|
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जीवन के इस संध्याकाल में अब कहीं भी जाने की या चला कर किसी से भी मिलने की कोई कामना नहीं रही है| तुम अपनी इच्छा से कहीं भी ले जाओ या किसी से भी मिला दो| मेरी स्वयं की कोई इच्छा नहीं है| जीवन से पूर्ण संतुष्टि और ह्रदय में पूर्ण तृप्ति तो तुम ही दे सकते हो| मुझे कोई असंतोष या शिकायत नहीं है| मुझे तुम्हारी प्रत्यक्ष उपस्थिति चाहिए, कोई ज्ञान आदि नहीं| मैं, मैं नहीं, अब तुम ही तुम हो| सब बाधाओं को दूर करो और स्वयं को पूर्ण रूप से व्यक्त करो|
"वायुर्यमोऽग्निर्वरुणः शशाङ्कः प्रजापतिस्त्वं प्रपितामहश्च|
नमो नमस्तेऽस्तु सहस्त्रकृत्वः पुनश्च भूयोऽपि नमो नमस्ते||
नमः पुरस्तादथ पृष्ठतस्ते नमोऽस्तु ते सर्वत एव सर्व|
अनन्तवीर्यामितविक्रमस्त्वं सर्वंसमाप्नोषि ततोऽसि सर्वः||"
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
११ नवेंबर २०१९

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