हमारे चारों ओर छाया असत्य और अंधकार दूर हो. दीपोत्सव की शुभ कामनाएँ .....
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भारतवर्ष में धर्म और संस्कृति के ह्रास और पतन से मैं बहुत अधिक व्यथित हूँ| मेरी भावनाएँ बहुत अधिक आहत हैं| अपने विचारों को ही यहाँ व्यक्त कर रहा हूँ|
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ज्योतिर्मय परम ब्रह्म से प्रार्थना है कि हमारे राष्ट्र भारतवर्ष से और हमारे निज जीवन से सब तरह का असत्य रूपी अंधकार दूर हो| हम सब का निज जीवन भगवान भुवनभास्कर की तरह परम ज्योतिर्मय हो| जीवन में शुभ ही शुभ और मंगल ही मंगल हो|
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श्रुति भगवती का यह कथन हमारे जीवन में चरितार्थ हो .....
"न तत्र सूर्यो भाति न चन्द्रतारकं नेमा विद्युतो भान्ति कुतोऽयमग्निः|
तमेव भान्तमनुभाति सर्वं तस्य भासा सर्वमिदं विभाति ||"
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भगवान वासुदेव हमारे निज जीवन में व्यक्त हों .....
"यदादित्यगतं तेजो जगद्भासयतेऽखिलम्| यच्चन्द्रमसि यच्चाग्नौ तत्तेजो विद्धि मामकम्||"
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हमारा संकल्प हो ..... अश्मा भवतु नस्तनू: ....
हमारे शरीर फौलादी, हमारे संकल्प आत्मविजेता व हर क्षेत्र में विश्व विजेता बनने के हों|
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पिता का पुत्र को उपदेश हो ... "अश्मा भव, परशुर्भव, हिरण्यमस्तृतं भव ||"
हे पुत्र ! तूँ चट्टान की तरह दृढ़ हो| महासागर की विकराल लहरें चट्टान पर प्रचंड आघात करती हैं, पर चट्टान जैसे विचलित नहीं होती, वैसे हे तूँ कभी विचलित मत होना|
तूँ परशु की तरह तीक्ष्ण हो| कोई तुम्हारे पर आघात करे तो वह तुम्हारी तीक्ष्णता से स्वयं कट जाये, और तुम जिस पर आघात करो उसका भी अस्तित्व न रहे|
तुम्हारे में स्वर्ण की सी पवित्रता हो| किसी भी तरह का कोई विकार तुम्हारे में न हो|
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भारतवर्ष में धर्म और संस्कृति के ह्रास और पतन से मैं बहुत अधिक व्यथित हूँ| मेरी भावनाएँ बहुत अधिक आहत हैं| अपने विचारों को ही यहाँ व्यक्त कर रहा हूँ|
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ज्योतिर्मय परम ब्रह्म से प्रार्थना है कि हमारे राष्ट्र भारतवर्ष से और हमारे निज जीवन से सब तरह का असत्य रूपी अंधकार दूर हो| हम सब का निज जीवन भगवान भुवनभास्कर की तरह परम ज्योतिर्मय हो| जीवन में शुभ ही शुभ और मंगल ही मंगल हो|
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श्रुति भगवती का यह कथन हमारे जीवन में चरितार्थ हो .....
"न तत्र सूर्यो भाति न चन्द्रतारकं नेमा विद्युतो भान्ति कुतोऽयमग्निः|
तमेव भान्तमनुभाति सर्वं तस्य भासा सर्वमिदं विभाति ||"
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भगवान वासुदेव हमारे निज जीवन में व्यक्त हों .....
"यदादित्यगतं तेजो जगद्भासयतेऽखिलम्| यच्चन्द्रमसि यच्चाग्नौ तत्तेजो विद्धि मामकम्||"
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हमारा संकल्प हो ..... अश्मा भवतु नस्तनू: ....
हमारे शरीर फौलादी, हमारे संकल्प आत्मविजेता व हर क्षेत्र में विश्व विजेता बनने के हों|
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पिता का पुत्र को उपदेश हो ... "अश्मा भव, परशुर्भव, हिरण्यमस्तृतं भव ||"
हे पुत्र ! तूँ चट्टान की तरह दृढ़ हो| महासागर की विकराल लहरें चट्टान पर प्रचंड आघात करती हैं, पर चट्टान जैसे विचलित नहीं होती, वैसे हे तूँ कभी विचलित मत होना|
तूँ परशु की तरह तीक्ष्ण हो| कोई तुम्हारे पर आघात करे तो वह तुम्हारी तीक्ष्णता से स्वयं कट जाये, और तुम जिस पर आघात करो उसका भी अस्तित्व न रहे|
तुम्हारे में स्वर्ण की सी पवित्रता हो| किसी भी तरह का कोई विकार तुम्हारे में न हो|
मेरे पुत्र ! तूँ शरीर नहीं आत्मा है| आत्मा का ही पर्याय राम है| तूँ परशुराम हो|
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हम जीव नहीं, परमशिव हैं| शिव में ही पूर्णता है| हमारा शिवत्व निरंतर व्यक्त हो|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२५ अक्तूबर २०१९
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हम जीव नहीं, परमशिव हैं| शिव में ही पूर्णता है| हमारा शिवत्व निरंतर व्यक्त हो|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२५ अक्तूबर २०१९
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