भगवान कहाँ हैं और कहाँ नहीं हैं ? ......
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यह एक प्रश्न है जो मैं आप सब से पूछ रहा हूँ कि भगवान कहाँ हैं, और कहाँ नहीं हैं?
लोग अपनी सीमित चेतना व सीमित अल्प ज्ञान से पूछते हैं कि भगवान कहाँ है? इसका कोई उत्तर है तो वह स्वयं के लिए ही हो सकता है| दूसरों को कोई संतुष्ट नहीं कर सकता| परमात्मा की स्पष्ट प्रत्यक्ष उपस्थिती कहाँ कितनी है यह हम अनुभूत ही कर सकते हैं|
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वर्षा ऋतु चल रही है| वर्षा के पश्चात पृथ्वी से एक बड़ी मोहक गंध निकलती है| वह गंध जहाँ जितनी अधिक मात्रा में है, वहाँ परमात्मा की उपस्थिति उतनी ही अधिक है| यह हम अनुभूत कर सकते हैं| किसी व्यक्ति को देखते ही मन श्रद्धा से भर उठता है, और हम स्वतः ही उसे नमन करते हैं| यह उस व्यक्ति का तप है जिसे हम नमन करते हैं| परमात्मा ही उसके तप में व्यक्त होते हैं| हम किसी भी प्राणी को देखते हैं तो उस व्यक्ति की जो प्राण चेतना है वह परमात्मा ही है| परमात्मा सभी प्राणियों के प्राणों में व्यक्त होते हैं| अग्नि का तेज और बर्फ की शीतलता भी परमात्मा ही है| हर पदार्थ के अणु जिस ऊर्जा से निर्मित हैं, वह ऊर्जा भी परमात्मा है| उस ऊर्जा के पीेछे का विचार भी परमात्मा है| सारा जीवन और उस से परे भी जो कुछ है वह परमात्मा ही है| और भी अधिक स्पष्ट अनुभूति ध्यान साधना में सर्वव्यापी ब्रह्म तत्व की आनंददायक अनुभूति से होती है, जिसके पश्चात कोई संदेह नहीं रहता| जो विकार हैं वे सांसारिक पुरुषों के अज्ञान और अधर्म आदि के कारण ही हैं|
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गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं ......
"पुण्यो गन्धः पृथिव्यां च तेजश्चास्मि विभावसौ| जीवनं सर्वभूतेषु तपश्चास्मि तपस्विषु||७:९||"
अर्थात् पृथ्वी में पवित्र गन्ध हूँ और अग्नि में तेज हूँ सम्पूर्ण भूतों में जीवन हूँ और तपस्वियों में मैं तप हूँ||
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रामचरितमानस के आयोध्याकाण्ड में ऋषि वाल्मीकि भगवान श्रीराम से यही प्रश्न पूछते है कि जहाँ आप न हों वह स्थान तो बता दीजिये ताकि मैं चलकर वही स्थान आपको दिखा दूं? वे स्वयं सारे स्थान भी बता देते हैं जहाँ भगवान श्रीराम को रहना चाहिए| बड़ा ही सुंदर प्रसंग है जो सभी को एक बार तो पढ़ना और समझना ही चाहिए .....
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यह एक प्रश्न है जो मैं आप सब से पूछ रहा हूँ कि भगवान कहाँ हैं, और कहाँ नहीं हैं?
लोग अपनी सीमित चेतना व सीमित अल्प ज्ञान से पूछते हैं कि भगवान कहाँ है? इसका कोई उत्तर है तो वह स्वयं के लिए ही हो सकता है| दूसरों को कोई संतुष्ट नहीं कर सकता| परमात्मा की स्पष्ट प्रत्यक्ष उपस्थिती कहाँ कितनी है यह हम अनुभूत ही कर सकते हैं|
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वर्षा ऋतु चल रही है| वर्षा के पश्चात पृथ्वी से एक बड़ी मोहक गंध निकलती है| वह गंध जहाँ जितनी अधिक मात्रा में है, वहाँ परमात्मा की उपस्थिति उतनी ही अधिक है| यह हम अनुभूत कर सकते हैं| किसी व्यक्ति को देखते ही मन श्रद्धा से भर उठता है, और हम स्वतः ही उसे नमन करते हैं| यह उस व्यक्ति का तप है जिसे हम नमन करते हैं| परमात्मा ही उसके तप में व्यक्त होते हैं| हम किसी भी प्राणी को देखते हैं तो उस व्यक्ति की जो प्राण चेतना है वह परमात्मा ही है| परमात्मा सभी प्राणियों के प्राणों में व्यक्त होते हैं| अग्नि का तेज और बर्फ की शीतलता भी परमात्मा ही है| हर पदार्थ के अणु जिस ऊर्जा से निर्मित हैं, वह ऊर्जा भी परमात्मा है| उस ऊर्जा के पीेछे का विचार भी परमात्मा है| सारा जीवन और उस से परे भी जो कुछ है वह परमात्मा ही है| और भी अधिक स्पष्ट अनुभूति ध्यान साधना में सर्वव्यापी ब्रह्म तत्व की आनंददायक अनुभूति से होती है, जिसके पश्चात कोई संदेह नहीं रहता| जो विकार हैं वे सांसारिक पुरुषों के अज्ञान और अधर्म आदि के कारण ही हैं|
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गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं ......
"पुण्यो गन्धः पृथिव्यां च तेजश्चास्मि विभावसौ| जीवनं सर्वभूतेषु तपश्चास्मि तपस्विषु||७:९||"
अर्थात् पृथ्वी में पवित्र गन्ध हूँ और अग्नि में तेज हूँ सम्पूर्ण भूतों में जीवन हूँ और तपस्वियों में मैं तप हूँ||
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रामचरितमानस के आयोध्याकाण्ड में ऋषि वाल्मीकि भगवान श्रीराम से यही प्रश्न पूछते है कि जहाँ आप न हों वह स्थान तो बता दीजिये ताकि मैं चलकर वही स्थान आपको दिखा दूं? वे स्वयं सारे स्थान भी बता देते हैं जहाँ भगवान श्रीराम को रहना चाहिए| बड़ा ही सुंदर प्रसंग है जो सभी को एक बार तो पढ़ना और समझना ही चाहिए .....
"काम क्रोध मद मान न मोहा, लोभ न क्षोभ न राग न द्रोहा |
जिनके कपट दंभ नहीं माया, तिन्ह के ह्रदय बसहु रघुराया ||
जे हरषहिं पर सम्पति देखी, दुखित होहिं पर बिपति विशेषी |
जिनहिं राम तुम प्राण पियारे, तिनके मन शुभ सदन तुम्हारे ||
जाति पांति धनु धरम बड़ाई, प्रिय परिवार सदन सुखदाई |
सब तजि रहहुँ तुम्हहि उर लाई, तेहिं के ह्रदय रहहु रघुराई ||"
यहाँ इस बात का स्पष्ट उत्तर मिल जाता है कि भगवान कहाँ हैं और कहाँ नहीं हैं| आप सब में व्यक्त परमात्मा को नमन!
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२१ सितंबर २०१९
जिनके कपट दंभ नहीं माया, तिन्ह के ह्रदय बसहु रघुराया ||
जे हरषहिं पर सम्पति देखी, दुखित होहिं पर बिपति विशेषी |
जिनहिं राम तुम प्राण पियारे, तिनके मन शुभ सदन तुम्हारे ||
जाति पांति धनु धरम बड़ाई, प्रिय परिवार सदन सुखदाई |
सब तजि रहहुँ तुम्हहि उर लाई, तेहिं के ह्रदय रहहु रघुराई ||"
यहाँ इस बात का स्पष्ट उत्तर मिल जाता है कि भगवान कहाँ हैं और कहाँ नहीं हैं| आप सब में व्यक्त परमात्मा को नमन!
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२१ सितंबर २०१९
जीवन का हर क्षण, हर कार्य परमात्मा को समर्पित है| ये साँसे वे ही ले रहे हैं, इस हृदय में वे ही धड़क रहे हैं, इन आँखों से वे ही देख रहे हैं, इन पैरों से वे ही चल रहे हैं, इन हाथों से वे ही कार्य कर रहे हैं, इस देह के प्राण भी वे ही हैं, और यह देह जिन अणुओं से बनी है, वे अणु और उनकी स्त्रोत वह ऊर्जा भी वे ही हैं| यह सारा अन्तःकरण (मन, बुद्धि, चित्त व अहंकार) भी वे ही हैं| सारा संसार प्राणमय है, वह प्राण-तत्व भी वे ही हैं| वे ही यह अनंत आकाश हैं| वे ही मेरे उपास्य हैं, उपासना भी वे ही हैं और यह उपासक भी वे ही हैं| वे ही वासुदेव श्रीकृष्ण हैं और वे ही परमशिव हैं| ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
ReplyDeleteकृपा शंकर
२२ सितंबर २०१९